पाकिस्तान, तुर्की, सऊदी और कतर के बावजूद इजराइल क्यों बना हुआ है अडिग?

आज कतर की राजधानी दोहा में अरब-इस्लामी समिट होने वाली है. इसमें अरब लीग और इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के 57 मुस्लिम देश भी शामिल हो रहे हैं. इजराइल ने 9 सितंबर के हमास के नेताओं को निशाना बनाकर कतर पर हवाई हमले किए थे. जिसके बाद कतर ने इमरजेंसी समिट बुलाई है.अब तक इजराइल के खिलाफ OIC की कई बैठकें हो चुकी है. पिछले एक साल में ही 3 बैठक हुई है, लेकिन बात निंदा से आगे बढ़ ही नहीं पाई. सवाल उठ रहा है कि इजराइल इन देशों से क्यों नहीं डरता है. इसकी वजह है कई मुस्लिम देशों के साथ उसके समझौते.
अजरबैजान-इजराइल के बीच तेल समझौता
अजरबैजान, इजराइल की जरूरत का 60% तेल सप्लाई करता है. यह देश इजराइल का सबसे बड़ा तेल सप्लायर है. मार्च 2025 में दोनों देशों ने एक गैस एक्सप्लोरेशन एग्रीमेंट पर दस्तखत किए थे, जिसके तहत अजरबैजान की राष्ट्रीय तेल कंपनी SOCAR को इजराइली क्षेत्रों में गैस खोजने का लाइसेंस मिला. अक्टूबर 2023 में जब हमास-इजराइल युद्ध के कारण अशदोद और हाइफा बंदरगाह बंद हुए थे, तब अजरबैजान ने इजराइल की ऊर्जा जरूरतें पूरी करने में अहम भूमिका निभाई.
यूएई और इजराइल के बीच अब्राहम समझौता
सितंबर 2020 में दोनों देशों के बीच अब्राहम समझौता हुआ था. इसके तहत UAE, इजराइल को मान्यता देने वाला पहला अरब राष्ट्र बना. बाद में बहरीन, मोरक्को और सूडान भी इसमें शामिल हुए. 2024 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार में इजाफा देखा गया. इजराइल, UAE से अपनी जरूरत के 10% पेट्रोलियम उत्पाद खरीदता है.UAE और इजराइल के बीच पर्यटन, शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार और सुरक्षा के क्षेत्रों में व्यापक सहयोग शुरू हुआ है. हालांकि, गाजा युद्ध के बाद UAE ने चेतावनी दी है कि वेस्ट बैंक के कब्जे की योजनाओं के कारण अब्राहम समझौता खतरे में पड़ सकता है.
और इजराइल के बीच गैस समझौता
मिस्र और इजराइल के बीच प्राकृतिक गैस समझौता दोनों देशों की ऊर्जा सुरक्षा के लिए अहम है. इजराइल की लेवियाथन और तामार गैस फील्ड्स से निकली गैस मिस्र के LNG (लिक्विफाइड नेचुरल गैस) टर्मिनलों के जरिए यूरोप तक पहुंचाई जाती है.2018 में हुए डेल्फिन समझौते के तहत इजराइल को मिस्र से नेचुरल गैस की सप्लाई मिलती है. मिस्र के साथ गैस व्यापार से इजराइल को हर साल अरबों डॉलर की कमाई होती है. गैस पाइपलाइन इंफ्रास्ट्रक्चर के माध्यम से दोनों देश इलाके में ऊर्जा हब बनने की दिशा में काम कर रहे हैं.
सऊदी हूती से परेशान, इजराइल न हो तो मुश्किलें बढ़ेगी
सऊदी अरब हूती विद्रोहियों की वजह से परेशान है. हूती विद्रोही 2014 से यमन में सक्रिय है और सऊदी अरब पर रॉकेट और ड्रोन हमले करते रहते हैं. अगर इस क्षेत्र में इजराइल कमजोर पड़ता है, तो ईरान की शक्ति और बढ़ेगी, जिससे हूती समूह और मजबूती हो जाएंगे.सऊदी अरब समझता है कि इजराइल की मौजूदगी से ईरानी विस्तारवाद पर रोक लगती है. हूती विद्रोहियों ने सऊदी में तेल डिपो पर कई बार हमले किए हैं, जिससे तेल का वैश्विक बाजार भी प्रभावित हुआ. वहीं इजराइल, यमन में हूती विद्रोहियों पर लगातार हमले करता है. इजराइल के न होने से सऊदी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.
तुर्की पर्दे के पीछे से व्यापार कर रहा
मई 2024 में गाजा युद्ध के कारण तुर्की ने इजराइल के साथ व्यापारिक संबंध तोड़ दिए, लेकिन तुर्की का दूतावास अभी भी तेल अवीव में सक्रिय है. दोनों देशों के बीच पर्दे के पीछे से व्यापार जारी है. NATO सदस्य के रूप में तुर्की के इजराइल के साथ दशकों पुराने रक्षा संबंध हैं. तुर्की की कंपनियां तीसरे देशों जैसे कि जॉर्जिया और आर्मेनिया के माध्यम से इजराइल के साथ व्यापार कर रही हैं.2024 में यह व्यापार $1.2 बिलियन तक पहुंचा है. तुर्की में 26,000 की यहूदी आबादी भी है. एर्दोगन सरकार सार्वजनिक रूप से फिलिस्तीन के समर्थन में बयान देती है, लेकिन व्यावसायिक हितों की वजह से इजराइल से संबंध बनाए हुए है.
पाकिस्तान और अमेरिकी दबाव
पाकिस्तान और इजराइल के बीच संबंध स्थापना में अमेरिका की भूमिका जटिल है. अमेरिका चाहता है कि अधिक से अधिक मुस्लिम देश इजराइल को मान्यता दें, लेकिन पाकिस्तान में जनता का बड़ा हिस्सा फिलिस्तीनी समर्थक है. अमेरिकी आर्थिक और सैन्य सहायता के मजे लूट रहा पाकिस्तान दुविधा में है.IMF से लोन और अमेरिकी सहायता के लिए पाकिस्तान को अमेरिकी दबाव का सामना करना पड़ता है. चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) की वजह से अमेरिका पाकिस्तान पर और दबाव बना रहा है. अगर पाकिस्तान ने इजराइल को मान्यता दी तो घर में ही विरोध का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए पाकिस्तान अब तक कोई फैसला नहीं ले पाया है.