पूर्णिया से सीमांचल तक पीएम मोदी का 36,000 करोड़ वाला चुनावी संदेश

विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बिहार का सियासी माहौल गरमाया हुआ है. राजनीतिक पार्टियां मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए हर संभव कोशिश में जुटी हुई हैं. जहां एक ओर एनडीए फिर से सत्ता पर काबिज होने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए है, वहीं दूसरी ओर महागठबंधन चुनावी अखाड़े में जमकर पसीना बहा रहा है. इस बीच सियासी दलों का सबसे ज्यादा फोकस सूबे के सीमांचल इलाके पर दिखाई दे रहा है. इसी इलाके में आज यानी 15 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दौरा कर रहे हैं, जहां आमजन को कई सौगातें देने वाले हैं.
पीएम मोदी पूर्णिया में 36,000 करोड़ रुपए की विकास परियोजनाओं का ऐलान करने वाले हैं, जिसमें पूर्णिया हवाई अड्डे के नए टर्मिनल भवन का उद्घाटन, राष्ट्रीय मखाना बोर्ड की भी शुरुआत समेत अन्य विकास कार्य शामिल हैं. वह बिहार में इस साल सातवीं बार पहुंच रहे हैं, जहां उन्होंने सीमांचल पर फोकस किया है. ये वही इलाका है, जो तेजी से राजनीतिक रणक्षेत्र के रूप में उभरा है. यहां प्रशांत किशोर की जन सुराज और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के मैदान में उतरने से मुकाबला और भी जटिल हो गया है. आइए जानते हैं कि सीमांचल में किस तरह से सियासी समीकरण बदल रहे हैं और मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण की संभावना बढ़ने से सियासी लड़ाई दिलचस्प हुई है…
महागठबंधन ने दिया एकजुटता का मैसेज
सीमांचल में एनडीए ने विकास पर अपना दांव लगाया है. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में कटिहार का दौरा किया था, जहां उन्होंने किसानों को सहायता का आश्वासन दिया और मखाना बोर्ड के गठन की घोषणा की थी. अब पीएम मोदी का दौरा है. साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी दौरा कर चुके हैं. वहीं, विपक्षी मोर्चे पर कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने अपनी वोटर अधिकार यात्रा के जरिए समर्थन जुटाने की कोशिश की है. ये यात्रा सीमांचल के 8 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरी.
वोटर यात्रा के दौरान उन्होंने महागठबंधन के भीतर एकजुटता का मैसेज दिया क्योंकि पूर्णिया से सांसद पप्पू यादव ने कांग्रेस से टिकट न मिलने के बाद निर्दलीय आरजेडी के खिलाफ चुनाव लड़ा था और लालू प्रसाद यादव के परिवार से रिश्ते बिगड़ गए थे. वोटर अधिकार के यात्रा पूर्णिया पहुंचने पर पप्पू यादव और तेजस्वी यादव के बीच आपसी रिश्ते फिर से जुड़ने जैसा मैसेज दिया गया. राहुल गांधी ने अपने संबोधनों के दौरान बेरोजगारी, कृषि और शिक्षा के मुद्दों पर राज्य और केंद्र दोनों सरकारों पर हमला बोला था.
ओवैसी की एंट्री से किसको नुकसान?
इन सब के अलावा सीमांचल में एआईएमआईएम और जन सुराज की मौजूदगी ने सियासी ड्रामे को और भी रोचक बना दिया है. एआईएमआईएम ने 2020 के विधानसभा चुनावों में सीमांचल में पांच विधानसभा सीटें हासिल की थीं, लेकिन इनमें से बाद में 4 विधायक आरजेडी में शामिल हो गए थे. अभी अमौर से उसका एकमात्र विधायक बचा है. यहां ओवैसी ने कांग्रेस और आरजेडी का समीकरण बिगाड़कर रख दिया है क्योंकि मुस्लिम वोट का ध्रुवीकरण हुआ है. पार्टी फिर से वापसी करने और इस क्षेत्र में अपना प्रभाव स्थापित करने के लिए ताबड़तोड़ मेहनत कर रही है.
इधर, राजनीतिक रणनीतिकार से कार्यकर्ता बने प्रशांत किशोर भी अपने जन सुराज आंदोलन के जरिए सीमांचल में काफी समय खर्च कर रहे हैं. वो लगातार दावा कर रहे हैं कि ओवैसी, लालू और नीतीश कुमार ने मुसलमानों का भला नहीं किया है. अब वे विकास के जरिए उनकी स्थिति बदलने वाले है. वे रूपौली, कस्बा, बनमनखी और बैसी जैसे विधानसभा क्षेत्रों में अपना फोकस किए हुए हैं. राजनीति के जानकारों का मानना है कि प्रशांत किशोर की एंट्री से सीमांचल में मुसलमानों का वोट बंटेगा, जिससे महागठबंधन को नुकसान हो सकता है और एनडीए गठबंधन को फायदा पहुंच सकता है.
सीमांचल में कितने फीसदी मुसलमान?
बिहार के सीमांचल में किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया जिले आते हैं और ये इलाका पश्चिम बंगाल और असम से सटा हुआ है. इन जिलों में 24 विधानसभा सीटें आती हैं. अररिया जिले में 6, किशनगंज में 4, पूर्णिया 7 और कटिहार में 7 विधानसभा सीटें हैं, जो चुनावी समीकरण को बनाने और बिगाड़ने का काम करती हैं. यहां खासबात ये है कि मुस्लिम आबादी ज्यादा है, जिसके चलते राजनीतिक दल अपने दांव-पेंच से उन्हें अपने पाले में करने में जुटे रहते हैं.साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, सीमांचल में औसतन 46 फीसदी मुसलमान हैं. अररिया में 43 फीसदी, किशनगंज में 68 फीसदी, पूर्णिया में 38 फीसदी, कटिहार में 44 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. इसके अलावा यादवों और अति पिछड़े वर्गों (ईबीसी) की अच्छी-खासी उपस्थिति है, जिसके चलते राजनीतिक समीकरण निर्णायक बन जाता है.
2015 और 2020 चुनाव के आंकड़े
अगर पिछले चुनावों की बात करें तो सीमांचल में कांग्रेस और आरजेडी की दबदबा रहा है, लेकिन ओवैसी के अकेले दम पर साल 2020 का चुनाव लड़ने से आरजेडी और कांग्रेस का समीकरण गड़बड़ा गया था. इलाके की 24 सीटों में से कांग्रेस ने 5, आरजेडी और लेफ्ट ने एक-एक सीट पर जीत दर्ज की थी, जबकि एआईएमआईएम ने पांच सीटों पर विजय पताका फहराई थी. इस लड़ाई में बीजेपी को फायदा पहुंचा और उसने सबसे ज्यादा 8 सीटें हासिल कर लीं और जेडीयू के खाते में 4 सीटें गईं. सबसे ज्यादा नुकसान आरजेडी को हुआ था. वहीं, 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 5, जेडीयू ने 5, कांग्रेस ने 5 सीटों पर विजय पताका फहराई थी. इसके अलावा आरजेडी ने सबसे ज्यादा 9 सीटें जीती थीं.
SIR में सबसे ज्यादा वोट पूर्णिया और किशनगंज से हटाए
अभी हाल ही में हुए वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर भी जमकर सियासत देखी गई. एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया कि मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र के चार जिलों में से दो जिले ऐसे हैं जहां सबसे ज्यादा वोट काटे गए हैं. हालांकि यूपी से सटे गोपालगंज पहला जिला था जहां सबसे अधिक 15.1 फीसदी मतदाता सूची हटाए गए. इसके बाद सीमांचल के पूर्णिया और किशनगंज जिलों का नंबर देखने को मिला. दोनों जिलों में क्रमशः 12.08 फीसदी और 11.82 फीसदी वोट हटाए गए, कटिहार में 8.27 फीसदी और अररिया में 7.59 फीसदी वोटों को हटाया गया.