तेजस्वी यादव की तेजी पर संकट, विपक्ष और परिवारिक विवाद ने बढ़ाई मुश्किलें

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं। राज्य की राजनीति का केंद्र बिंदु इस बार राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव बने हुए हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी को सबसे ज्यादा सीटें दिलाकर वे मुख्यमंत्री पद के सबसे करीब पहुंचे थे। जाहिर है, इस बार सभी विपक्षी दल उन्हें घेरने की कोशिश में लगे हैं। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और अन्य पार्टियां जैसे जनसुराज तेजस्वी और आरजेडी को निशाने पर ले रही हैं। हाल ही में वोटर अधिकार यात्रा ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में ला दिया है, लेकिन उनकी कुछ रणनीतिक और व्यक्तिगत फैसलों ने उनकी तेज रफ्तार को थोड़ा प्रभावित किया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ये कदम चुनावी मैदान में उनके लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकते हैं।

तेजस्वी यादव की राजनीतिक यात्रा हमेशा से ही उतार-चढ़ाव भरी रही है। लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे के रूप में उन्होंने युवा नेतृत्व की छवि बनाई है। 2020 में आरजेडी ने 75 सीटें जीतीं, जो किसी भी दल की सबसे ज्यादा थीं। लेकिन गठबंधन की वजह से सरकार नहीं बन सकी। अब 2025 में वे फिर से मैदान में हैं, लेकिन हाल की घटनाओं ने सवाल खड़े कर दिए हैं। सबसे पहले बात करें वोटर अधिकार यात्रा की। 17 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक चली इस यात्रा में तेजस्वी ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ मिलकर मतदाता सूची में कथित अनियमितताओं के खिलाफ अभियान चलाया। यह यात्रा पूरे राज्य में घूमी, लेकिन इसमें राहुल गांधी की प्रमुखता ने तेजस्वी की छवि को प्रभावित किया। खुली जीप में ड्राइविंग सीट पर राहुल की मौजूदगी ने आरजेडी कार्यकर्ताओं और बिहार के वोटरों में यह धारणा पैदा की कि तेजस्वी उनके पिछलग्गू बन गए हैं। लोग राहुल से हाथ मिलाने को उत्सुक दिखे, जबकि तेजस्वी पृष्ठभूमि में नजर आए। मुजफ्फरपुर में एक आरजेडी विधायक को राहुल से मिलने से इनकार और सुरक्षा कर्मियों द्वारा धक्का दिए जाने की घटना ने इस धारणा को मजबूत किया कि यात्रा कांग्रेस की है, न कि महागठबंधन की। आरजेडी का पारंपरिक वोट बैंक यादव, मुस्लिम और कुछ पिछड़े वर्ग तेजस्वी को मजबूत क्षेत्रीय नेता के रूप में देखता है। लेकिन राहुल के साथ सहायक भूमिका में देखकर कार्यकर्ताओं में असंतोष फैला। तेजस्वी की मुख्यमंत्री उम्मीदवारी पर राहुल की चुप्पी ने निराशा बढ़ाई। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान ने टिप्पणी की कि तेजस्वी राहुल के सारथी बनकर अपनी पहचान खो रहे हैं। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि यह यात्रा तेजस्वी के लिए सबसे बड़ी भूल साबित हो सकती है, क्योंकि बिहार की राजनीति में क्षेत्रीय अस्मिता महत्वपूर्ण है।

यात्रा के बाद तेजस्वी ने नीतीश कुमार पर हमला बोलते हुए उन्हें नैतिक भ्रष्टाचार का भीष्म पितामह करार दिया। यह बयान अति उत्साह में दिया गया लगता है। तेजस्वी ने दावा किया कि नीतीश सरकार के संरक्षण में भ्रष्टाचार चरम पर है। तीन इंजीनियरों के पास 500 करोड़, 300 करोड़ और 100 करोड़ की संपत्ति मिली। उन्होंने पूछा कि जो मंत्री इसमें शामिल है, नीतीश उसके घर रोज क्या करने जाते हैं? यह हमला नीतीश की ईमानदार छवि को चुनौती देता है। बिहार में नीतीश के विरोधी जैसे लालू यादव खुद कह चुके हैं कि उनकी ईमानदारी पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। ग्रामीण और अत्यंत पिछड़े वर्ग (ईबीसी) वोटर, जो नीतीश के सुशासन से प्रभावित हैं, इस आरोप से नाराज हो सकते हैं। बिना ठोस सबूतों के लगाए आरोप तेजस्वी की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा सकते हैं। यह रणनीति आरजेडी के कोर वोट बैंक को उत्साहित कर सकती है, लेकिन गैर-यादव ओबीसी और सवर्ण वोटरों को दूर कर सकती है। हाल के सर्वेक्षणों में नीतीश की छवि अभी भी मजबूत दिख रही है, और तेजस्वी का यह हमला उल्टा पड़ सकता है। बीजेपी और जेडीयू ने इसे अवसर के रूप में लिया है, कहते हुए कि तेजस्वी पुरानी राजनीति पर उतर आए हैं।

परिवारिक राजनीति में तेजस्वी की एक और चुनौती है उनके बड़े भाई तेजप्रताप यादव को पार्टी से अलग करना। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि लालू यादव का व्यक्तित्व उनके दोनों बेटों में बंटा है। हास्य और करिश्मा तेजप्रताप को मिला, जबकि राजनीतिक चतुराई तेजस्वी को। तेजप्रताप की पार्टी और परिवार में अलग भूमिका रही है। लेकिन चुनाव से ठीक पहले उन्हें किनारे लगाना नुकसानदायक हो सकता है। तेजप्रताप समर्थकों का आरोप है कि इसके पीछे तेजस्वी हैं। तेजप्रताप की अनोखी शैली और विवादास्पद बयानों के बावजूद यादव समुदाय, खासकर युवाओं में वे लोकप्रिय हैं। उनकी धार्मिक छवि और करिश्माई व्यक्तित्व यादव वोट बैंक को आकर्षित करता है। हाल में तेजप्रताप ने पार्टी से अलग होकर अपनी राह चुन ली, जिससे आरजेडी में असंतोष बढ़ा। परिवारिक कलह बिहार की राजनीति में नई नहीं है, लेकिन चुनावी मौसम में यह तेजस्वी के लिए बोझ बन सकती है। कुछ कार्यकर्ता मानते हैं कि तेजप्रताप की अनदेखी से यादव वोटों में बिखराव हो सकता है, जो आरजेडी की रीढ़ है।

तेजस्वी की छवि को एक और झटका लगा मुंबई के मरीन ड्राइव पर बनी रील से। सोशल मीडिया पर वायरल इस वीडियो में वे डांस करते नजर आए, जो उनके गंभीर व्यक्तित्व से अलग था। शायद यह युवा वोटरों को आकर्षित करने की कोशिश थी, लेकिन बिहार चुनाव के संदर्भ में समय गलत चुना गया। यहां मुकाबला गंभीर मुद्दों जैसे बेरोजगारी, शिक्षा और विकास पर है। तेजस्वी की छवि जमीनी और गंभीर नेता की बन रही थी, लेकिन इस रील ने उसे नुकसान पहुंचाया। बिहार जैसे राज्य में वोटर गंभीर नेतृत्व पसंद करते हैं। बीजेपी और जेडीयू ने इसे गैर-जिम्मेदाराना हरकत बताकर प्रचारित किया। बीजेपी ने सोशल मीडिया पर कहा कि यह बिहार की समस्याओं से पलायन है। दिलचस्प बात यह कि कुछ बीजेपी समर्थकों ने इसे नीतीश सरकार की उपलब्धि बताया, कहते हुए कि बिहार में अब ऐसी सड़कें और रोशनी है कि रात में रील बनाई जा सकती है। यह कानून-व्यवस्था की तारीफ है। तेजस्वी की यह हरकत युवाओं को तो लुभा सकती है, लेकिन परंपरागत वोटरों को दूर कर सकती है।

इन सबके बावजूद तेजस्वी यादव की ताकत उनकी युवा अपील और जमीनी मुद्दों पर पकड़ है। उन्होंने हाल में आरजेडी विधायकों की बैठक बुलाकर चुनावी रणनीति पर चर्चा की। महागठबंधन में सीट बंटवारे और उम्मीदवार चयन पर फोकस है। वे राज्यव्यापी यात्रा पर निकलने वाले हैं, जो वोटरों से सीधा जुड़ाव बनाएगी। लेकिन इन गलतियों से सीख लेकर वे अपनी छवि सुधार सकते हैं। राजनीति में गलतियां सुधारने का मौका मिलता है, और तेजस्वी जैसे युवा नेता के पास समय है। बिहार के वोटर इस बार क्या फैसला लेंगे, यह देखना बाकी है। लेकिन इतना तय है कि तेजस्वी केंद्र में हैं, और उनकी हर चाल पर नजरें टिकी हैं। चुनाव नजदीक आते ही सियासी गर्मी और बढ़ेगी, और तेजस्वी को इन चुनौतियों से पार पाना होगा।

तेजस्वी की रणनीति में अब फोकस युवा रोजगार, शिक्षा और विकास पर है। उन्होंने हाल में केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए। महागठबंधन में कांग्रेस और अन्य दलों के साथ तालमेल बनाने की कोशिशें तेज हैं। लेकिन परिवारिक और रणनीतिक मुद्दों ने थोड़ी मुश्किल बढ़ाई है। राजनीतिक पंडित मानते हैं कि अगर तेजस्वी इनसे पार पा गए, तो 2025 उनका साल हो सकता है। अन्यथा, नीतीश कुमार की अनुभवी राजनीति उन्हें फिर से मात दे सकती है। बिहार की जनता अब फैसला करेगी कि कौन सा नेता उनकी उम्मीदों पर खरा उतरता है। चुनावी मैदान में अभी कई ट्विस्ट बाकी हैं, और तेजस्वी की यात्रा रोचक बनी रहेगी।

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