राहुल-तेजस्वी की यात्रा पर भारी पड़ा ‘गाली विवाद’, एनडीए ने महिला अस्मिता से जोड़ा मुद्दा

बिहार की सियासत में इन दिनों हलचल मची हुई है। विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज होने के बीच दरभंगा में ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी दिवंगत मां हीराबेन के खिलाफ की गई अभद्र टिप्पणी ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने इस टिप्पणी को महिला अस्मिता से जोड़कर इसे बड़ा चुनावी हथियार बना लिया है। इस मुद्दे पर बीजेपी ने पूरे बिहार में हंगामा खड़ा कर दिया और 4 सितंबर 2025 को पांच घंटे का बिहार बंद बुलाया, जो सुबह सात बजे से दोपहर एक बजे तक चला। इस बंद में बीजेपी की महिला मोर्चा ने अगुआई की, और सड़कों पर उतरकर कांग्रेस व राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के खिलाफ जोरदार नारेबाजी की। यह बंद सिर्फ विरोध प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति है, जिसके जरिए एनडीए बिहार की जनता, खासकर महिलाओं की भावनाओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश में है।
इस पूरे विवाद की शुरुआत हुई थी कांग्रेस नेता राहुल गांधी और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ से, जिसका मकसद मतदाता सूची में कथित गड़बड़ियों को उजागर करना था। 16 दिनों में 110 विधानसभा सीटों को कवर करने वाली यह यात्रा 1 सितंबर को पटना में खत्म हुई। लेकिन दरभंगा में मंच से एक कांग्रेस नेता द्वारा पीएम मोदी और उनकी मां के खिलाफ की गई आपत्तिजनक टिप्पणी ने सारा माहौल बदल दिया। बीजेपी ने इसे तुरंत पकड़ लिया और इसे न सिर्फ पीएम का अपमान, बल्कि पूरे बिहार और देश की माताओं-बहनों की बेइज्जती करार दिया। मंगलवार को जीविका दीदियों को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने भावुक अंदाज में कहा, “मैं कांग्रेस को एक बार मां के अपमान के लिए माफ कर सकता हूं, लेकिन बिहार की जनता इसे कभी बर्दाश्त नहीं करेगी।” उन्होंने इस मुद्दे को छठी मैया और बिहार की मातृशक्ति से जोड़कर इसे और बड़ा कर दिया।
इसके बाद बीजेपी ने इसे सियासी हथियार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बंद से एक दिन पहले बिहार के प्रमुख अखबारों में एनडीए की ओर से विज्ञापन छपवाए गए। इनमें एक मां की तस्वीर और गुस्से से भरे व्यक्ति का चित्र था, साथ ही लिखा था, “कांग्रेस-आरजेडी के मंच से पीएम की मां को दी गई गाली ने पूरे बिहार को शर्मसार कर दिया।” विज्ञापन में लोगों से स्वेच्छा से बंद में शामिल होने की अपील थी। यह बीजेपी की पुरानी रणनीति का हिस्सा है, जिसमें वह विपक्ष की छोटी-सी गलती को बड़ा मुद्दा बनाकर जनता की भावनाओं को भुनाती है। 2007 में ‘मौत का सौदागर’, 2014 में ‘चायवाला’ और 2019 में ‘चौकीदार चोर है’ जैसे विवादों को बीजेपी ने इसी तरह भुनाया था। अब ‘गाली कांड’ को लेकर भी यही रणनीति अपनाई जा रही है।
4 सितंबर को बिहार बंद का असर पूरे राज्य में दिखा। पटना में बीजेपी महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष धर्मशिला गुप्ता की अगुवाई में इनकम टैक्स गोलंबर से डाक बंगला चौराहे तक विशाल मार्च निकाला गया। सैकड़ों महिलाएं सड़कों पर उतरीं, जो “मां का अपमान बिहार सहन नहीं करेगा” और “राहुल-तेजस्वी माफी मांगो” जैसे नारे लगा रही थीं। बीजेपी नेत्री अनामिका पासवान ने कहा, “महागठबंधन की संस्कृति ही गाली-गलौज की है। वे माताओं-बहनों का सम्मान नहीं जानते। बिहार की महिलाएं इस अपमान का जवाब वोट से देंगी।” बंद का असर सिवान, कटिहार, औरंगाबाद, बांका, गोपालगंज, हाजीपुर, अररिया, पूर्णिया और मुंगेर जैसे शहरों में भी दिखा। कटिहार में पूर्व उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद और मेयर उषा देवी अग्रवाल ने मिर्चाइबाड़ी बज्रंग बली चौक पर टायर जलाकर सड़क जाम की। गोपालगंज में एनएच 27 पर यातायात ठप रहा। मुंगेर के तरापुर में जेडीयू विधायक राजीव सिंह ने शहीद चौक पर जाम लगाया। बांका में पंजवारा-गोड्डा नेशनल हाईवे 333ए पर प्रदर्शन हुआ। हाजीपुर में गांधी चौक पर महिलाओं ने नारेबाजी की। हालांकि, आपातकालीन सेवाओं जैसे अस्पताल, एंबुलेंस और रेलवे को बंद से छूट दी गई थी।
इस बंद के पीछे बीजेपी की रणनीति साफ है- वह इसे महिला अस्मिता का ‘ट्रंप कार्ड’ बनाना चाहती है। बिहार में 2 करोड़ 96 लाख से ज्यादा महिला मतदाता हैं, जो चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाती हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में 243 सीटों में से 167 पर महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा मतदान किया था। पुरुषों का मतदान प्रतिशत 54 फीसदी था, जबकि महिलाओं का 60 फीसदी। उस चुनाव में 41 फीसदी महिलाओं ने एनडीए को वोट दिया, जबकि महागठबंधन को सिर्फ 31 फीसदी। पीएम मोदी ने तब कहा था कि ‘साइलेंट वोटर्स’ यानी महिलाओं ने एनडीए की जीत में बड़ा योगदान दिया। अब बीजेपी इस गाली कांड को महिलाओं और अति पिछड़े वर्ग (ईबीसी) से जोड़कर यह संदेश दे रही है कि कांग्रेस-आरजेडी की सोच एक ईबीसी समुदाय से आने वाले नेता की मां के प्रति कितनी नीच है।
कानूनी मोर्चे पर भी बीजेपी ने कदम उठाए हैं। पटना की अदालत में राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, वीआईपी चीफ मुकेश सहनी और मो. रिजवी उर्फ राजा के खिलाफ परिवाद पत्र दाखिल किया गया है, जिसकी सुनवाई चल रही है। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने कहा, “यह अपमान सिर्फ पीएम की मां का नहीं, बल्कि हर मां का है।” जेडीयू नेता उमेश कुशवाहा ने इसे लोकतंत्र पर धब्बा बताया, जबकि हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के अनिल कुमार ने इसे जंगलराज की याद दिलाने वाला बताया। बीजेपी की कोर कमिटी में इस मुद्दे पर आगे की रणनीति बन रही है, जिसमें टिकट वितरण के लिए सर्वे डेटा का इस्तेमाल होगा।
विपक्ष ने भी पलटवार करने की कोशिश की है। तेजस्वी यादव ने बीजेपी पर तंज कसते हुए कहा, “प्रधानमंत्री विदेश में हंसते हैं और देश में रोते हैं। यह बंद सस्ती सियासत है।” कांग्रेस ने दावा किया कि उनके मंच से ऐसी कोई टिप्पणी नहीं की गई और बीजेपी असली मुद्दों से ध्यान भटका रही है। लेकिन सियासी जानकारों का मानना है कि यह विवाद राहुल गांधी की मेहनत पर पानी फेर सकता है। उनकी यात्रा का मकसद मतदाता सूची की गड़बड़ियों को उजागर करना था, लेकिन अब सारा ध्यान ‘गाली कांड’ पर है।
बिहार की सियासत में यह कोई नई बात नहीं है। बीजेपी हमेशा से भावनात्मक मुद्दों को भुनाने में माहिर रही है। इस बार भी वह महिलाओं और ग्रामीण मतदाताओं को भावनात्मक रूप से जोड़कर वोट बैंक मजबूत करने की कोशिश में है। सड़कों पर टायर जल रहे हैं, बाजार बंद हैं, और नारे गूंज रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह ‘ट्रंप कार्ड’ बीजेपी को चुनावी वैतरणी पार कराएगा? क्या बिहार की जनता, खासकर महिलाएं, इस मुद्दे पर एनडीए के साथ खड़ी होंगी? या फिर महागठबंधन कोई नया दांव चलकर बाजी पलट देगा? जवाब तो चुनावी नतीजे ही देंगे, लेकिन फिलहाल बिहार की सियासत में ‘गाली कांड’ ने नया रंग भर दिया है। सड़कें जाम हैं, लेकिन सियासी दांव-पेंच पूरे शबाब पर हैं।