टोपी विवाद से बिहार की सियासत में उबाल, नीतीश की सेक्युलर छवि पर उठे सवाल

अजय कुमार,
वरिष्ठ पत्रकार
लखनऊ ( उ. प्र.)
पटना: बिहार की सियासत में एक बार फिर तूफान खड़ा हो गया है। 21 अगस्त 2025 को पटना के बापू सभागार में बिहार राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड के शताब्दी समारोह में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुस्लिम टोपी पहनने से साफ इनकार कर दिया। पहले मदरसा बोर्ड के सदस्य सलीम परवेज ने टोपी पहनाने की कोशिश की, फिर अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मोहम्मद जमा खान ने प्रयास किया, लेकिन नीतीश ने टोपी लेकर उल्टा जमा खान को ही पहना दी। यह पल कैमरे में कैद हुआ और सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो ने सियासी हलकों में आग लगा दी। विपक्ष ने इसे मुस्लिम विरोधी रुख बताकर नीतीश पर हमले तेज कर दिए। राजद नेता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, “नीतीश अब किसी धर्म का सम्मान नहीं करते।” कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने तंज कसा कि नीतीश हमेशा अल्पसंख्यकों को “टोपी पहनाते” रहे हैं। तेजस्वी यादव ने भी सीएम पर करारा कटाक्ष किया, कहा कि “मदरसा शिक्षकों को बुलाकर अपमान किया।” लेकिन क्या यह टोपी विवाद सिर्फ सियासी हथकंडा है, या नीतीश की सेक्युलर छवि पर वाकई सवाल उठ रहे हैं? आइए, इस घटना की जड़ों में उतरते हैं और देखते हैं कि नीतीश ने मुस्लिम समुदाय के लिए क्या-क्या किया, जो विपक्ष शायद भूलना चाहता है।
विवाद की शुरुआत और सियासी तापमान
2025 के बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, और मुस्लिम वोटर, जो राज्य की 18 फीसदी आबादी हैं, कई सीटों पर किंगमेकर हैं। खासकर सीमांचल में, जहाँ किशनगंज जैसे इलाकों में मुस्लिम वोटर 70 फीसदी से ज्यादा हैं। समारोह में नीतीश ने मदरसा शिक्षकों की सैलरी बढ़ाने, अल्पसंख्यक छात्रावासों के निर्माण, और उर्दू शिक्षा को बढ़ावा देने जैसे कामों का जिक्र किया। लेकिन टोपी न पहनने की घटना ने सारी चर्चा को पीछे छोड़ दिया। वायरल वीडियो में नीतीश को टोपी जमा खान को पहनाते देखा गया, जिसे विपक्ष ने मुस्लिम भावनाओं का अपमान बताया। तेजस्वी ने सोशल मीडिया पर लिखा, “मदरसा शिक्षकों को झांसा देकर बुलाया और टोपी ठुकराकर अपमान किया।” कांग्रेस ने इसे बीजेपी के दबाव में लिया गया फैसला करार दिया। जदयू ने बचाव में कहा कि नीतीश ने टोपी का अपमान नहीं किया, बल्कि सम्मान में जमा खान को पहनाई। बिहार अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष गुलाम रसूल बलियावी ने कहा, “नीतीश ने मुस्लिमों के लिए जितना किया, उतना न कांग्रेस ने किया, न लालू-राबड़ी ने।
नीतीश की सेक्युलर छवि पर सवाल
नीतीश कुमार की सेक्युलर छवि उनकी राजनीति की रीढ़ रही है। 2013 में उन्होंने नरेंद्र मोदी की आलोचना की थी, जब मोदी ने मुस्लिम टोपी पहनने से इनकार किया था। नीतीश ने कहा था, “नेता को टीका भी लगाना चाहिए, टोपी भी पहननी चाहिए।” लेकिन अब खुद नीतीश का टोपी से परहेज चर्चा में है। इससे पहले सीतामढ़ी में उन्होंने मंदिर में पंडित द्वारा टीका लगाने से भी मना किया था। जानकार कहते हैं कि नीतीश की सोच सभी धर्मों को समान सम्मान देने की है। वे किसी एक धर्म को विशेषाधिकार नहीं देना चाहते। लेकिन बीजेपी से गठबंधन के बाद उनके कुछ कदमों पर विपक्ष सवाल उठाता रहा है। तेजस्वी ने दावा किया कि नीतीश का “भगवाकरण” हो रहा है, जबकि जदयू का कहना है कि नीतीश ने हमेशा सभी धर्मों का सम्मान किया।
नीतीश के काम: मिसाल या दिखावा?
विपक्ष नीतीश को मुस्लिम विरोधी बता रहा है, लेकिन उनके काम कुछ और कहानी कहते हैं। 2005 में सत्ता संभालने के बाद नीतीश ने मुस्लिम समुदाय के लिए कई ऐतिहासिक कदम उठाए। सबसे बड़ा उदाहरण है कब्रिस्तानों की घेराबंदी। बिहार में 9,000 पंजीकृत कब्रिस्तानों में से 8,000 की दीवारें बनवाई गईं, जो पहले हिंदू-मुस्लिम विवादों का कारण बनते थे। मदरसा शिक्षकों को सरकारी शिक्षकों जैसी सैलरी दी गई, उर्दू अनुवादकों और शिक्षकों की भर्ती हुई। अल्पसंख्यक छात्रावासों का निर्माण और मदरसों को सरकारी मान्यता जैसे कदमों ने मुस्लिम समुदाय को सशक्त किया। नीतीश ने कहा कि 2005 से पहले मुस्लिमों के लिए कोई काम नहीं हुआ, जबकि उनकी सरकार ने मदरसों की हालत सुधारी। 2011 में 2,459 मदरसों को सैलरी देने का वादा किया गया, लेकिन अब 1,659 ही बचे हैं। शिक्षक भुखमरी की कगार पर हैं, और समारोह में उनकी माँगों पर हंगामा हुआ।
भागलपुर दंगा और नीतीश की सख्ती
1989 का भागलपुर दंगा कांग्रेस शासन की सबसे बड़ी विफलता थी। 1,000 से ज्यादा लोग मारे गए, जांच में देरी हुई, दोषियों को सजा नहीं मिली। लालू यादव के राज में भी दंगाइयों को संरक्षण के आरोप लगे। लेकिन नीतीश ने सत्ता में आते ही जांच तेज की, दोषियों को सजा दिलाई, और पीड़ितों को मुआवजा दिया। सामाजिक सौहार्द के लिए कदम उठाए। 2020 के चुनाव में जदयू से 19 मुस्लिम विधायक जीते, जो नीतीश के मुस्लिम समर्थन को दिखाता है। नीतीश ने एनआरसी का खुलकर विरोध किया और मुस्लिम महिलाओं के लिए वित्तीय सहायता बढ़ाई। राजद की ‘एमवाई’ (मुस्लिम-यादव) रणनीति ने ऊपरी मुस्लिम जातियों को फायदा दिया, लेकिन पसमांदा जैसे गरीब मुस्लिम उपेक्षित रहे। नीतीश ने शिक्षा, रोजगार, और बुनियादी ढांचे में सभी को बराबर लाभ पहुँचाया।
वक्फ कानून और मुस्लिम नाराजगी
नीतीश की जदयू ने हाल ही में वक्फ कानून का समर्थन किया, जिससे मुस्लिम समुदाय का एक वर्ग नाराज है। सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून पर आंशिक रोक लगाई है। इसके अलावा, मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण में 65.5 लाख नाम हटाए जाने पर विपक्ष ने मुस्लिम बहुल इलाकों को निशाना बनाने का आरोप लगाया। 2020 में जदयू से एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं जीता, जिसके बाद नीतीश ने बसपा से जीते जमा खान को अपनी पार्टी में शामिल कर मंत्री बनाया। लेकिन टोपी विवाद ने जदयू की मुश्किलें बढ़ा दीं। कुछ मुस्लिम नेताओं ने पार्टी छोड़ दी, और इफ्तार पार्टियों का भी विरोध हुआ। नीतीश ने अल्पसंख्यक संवाद कार्यक्रम शुरू किए, लेकिन मदरसा शिक्षकों की सैलरी और भर्ती के मुद्दे अनसुलझे हैं।
विपक्ष की रणनीति और मुस्लिम वोट
बिहार में मुस्लिम वोटर 48 सीटों पर निर्णायक हैं। राजद की ‘एमवाई’ रणनीति ने हमेशा ऊपरी मुस्लिम जातियों को फायदा पहुँचाया, लेकिन पसमांदा जैसे गरीब मुस्लिम उपेक्षित रहे। नीतीश ने एनआरसी का विरोध किया, मुस्लिम महिलाओं के लिए योजनाएँ शुरू कीं, और शिक्षा-रोजगार में समान अवसर दिए। लेकिन विपक्ष इसे दिखावा बता रहा है। तेजस्वी और राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ मुस्लिम वोटों को साधने की कोशिश है। 2020 में AIMIM ने सीमांचल में 5 सीटें जीतकर मुस्लिम वोटों में सेंध लगाई थी, हालांकि बाद में 4 विधायक राजद में शामिल हो गए। नीतीश का टोपी न पहनना अब विपक्ष के लिए हथियार बन गया है।
नीतीश की न्यूट्रल पॉलिटिक्स
जानकार कहते हैं कि नीतीश की नीति सभी धर्मों को समान सम्मान देने की है। टोपी न पहनना और टीका न लगाना उनका व्यक्तिगत फैसला हो सकता है, लेकिन सियासी तूफान खड़ा हो गया। नीतीश ने हमेशा संतुलन साधा है। 2020 में 19 मुस्लिम विधायकों ने जदयू को समर्थन दिया, जो उनकी स्वीकार्यता दिखाता है। लेकिन वक्फ कानून और टोपी विवाद ने मुस्लिम वोटरों में नाराजगी पैदा की है। सोशल मीडिया पर कुछ यूजर्स कहते हैं कि नीतीश ने दिखावा छोड़ा, जबकि अन्य कहते हैं कि यह बीजेपी के दबाव का नतीजा है। समारोह में मदरसा शिक्षकों ने सैलरी और भर्ती की माँग को लेकर हंगामा किया, और नीतीश ने उनके आवेदन लिए, लेकिन कोई ठोस घोषणा नहीं की।
मदरसा शिक्षकों की माँगें
मदरसा शिक्षकों की नाराजगी भी इस विवाद का हिस्सा है। 2011 में नीतीश ने 2,459 मदरसों को सैलरी देने का वादा किया था, लेकिन अब 1,659 ही बचे हैं। शिक्षक कम वेतन और अनिश्चितता से जूझ रहे हैं। समारोह में शिक्षकों ने हंगामा किया, और कुछ ने मंच पर आवेदन देने की कोशिश की। नीतीश ने आवेदन लिए, लेकिन विपक्ष इसे दिखावा बता रहा है। अल्पसंख्यक कल्याण के लिए नीतीश ने बजट बढ़ाया, लेकिन शिक्षकों का कहना है कि जमीन पर बदलाव कम है।
आगे की राह
टोपी विवाद ने बिहार की सियासत को नया मोड़ दे दिया है। नीतीश के काम निर्विवाद हैं- कब्रिस्तान घेराबंदी, मदरसा सुधार, सामाजिक सौहार्द। लेकिन चुनावी माहौल में प्रतीकात्मक मुद्दे हावी हो रहे हैं। विपक्ष इसे भुनाने में जुटा है, जबकि जदयू डैमेज कंट्रोल में। नीतीश ने कहा कि उनकी सरकार ने मुस्लिम समुदाय के लिए ऐतिहासिक काम किए, लेकिन टोपी विवाद और मदरसा शिक्षकों की नाराजगी ने सवाल उठाए। क्या यह विवाद नीतीश की दो दशक की मेहनत पर पानी फेर देगा? या बिहार का मुस्लिम वोटर उनके कामों को याद रखेगा? यह जवाब आने वाले चुनावों में मिलेगा।