लखनऊ में पवन सिंह और मनीष कश्यप की मुलाकात से बिहार में नए राजनीतिक समीकरण के संकेत

अजय कुमार,वरिष्ठ पत्रकार
लखनऊ में हाल ही में भोजपुरी अभिनेता पवन सिंह और यूट्यूबर मनीष कश्यप की मुलाकात ने बिहार में नए राजनीतिक समीकरणों को जन्म देने की भूमिका तैयार कर दी है। दोनों की एक साथ तस्वीर सामने आने के बाद यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या आने वाले विधानसभा चुनाव में यह जोड़ी किसी राजनीतिक मंच पर एक साथ उतर सकती है।तस्वीर में पवन सिंह की मां मनीष कश्यप को आशीर्वाद देती नज़र आईं। दृश्य सहज था, मगर इसके निहितार्थ सामान्य नहीं माने जा रहे। ऐसे समय में जब पवन सिंह भाजपा से दूरी बना चुके हैं और मनीष कश्यप ने भी भाजपा छोड़ने के बाद सरकार पर सीधा आरोप लगाया है, तब दोनों का यूं मिलना बिहार की आगामी राजनीति में संभावनाओं की ओर इशारा करता है।
पवन सिंह ने लोकसभा चुनाव 2024 में काराकाट सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था। इसी सीट से भाजपा गठबंधन ने उपेंद्र कुशवाहा को मैदान में उतारा। दोनों उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन पवन सिंह ने जिस तरह से दो लाख से अधिक मत बटोरे, उससे यह स्पष्ट हुआ कि उनका प्रभाव फिल्मी पर्दे से बाहर भी मजबूत है।वहीं दूसरी ओर मनीष कश्यप की छवि एक ऐसे रिपोर्टर की रही है जो सरकार से सवाल पूछता रहा है। जब उनके खिलाफ कानून का शिकंजा कसना शुरू हुआ, उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा की मौन सहमति से उन्हें टारगेट किया गया। इसके बाद उन्होंने पार्टी से खुद को अलग कर लिया। अब वे बिहार में अपने समर्थकों के साथ “जनता की आवाज़” के नाम पर नए राजनीतिक मंच की तैयारी में हैं।
लखनऊ में दोनों की भेंट ऐसे समय हुई है जब बिहार की राजनीति में कई बदलाव दिखने लगे हैं। राष्ट्रीय स्तर की पार्टियां बिहार में अपने समीकरण दुरुस्त करने में जुटी हैं और क्षेत्रीय ताकतें नए चेहरे तलाश रही हैं। ऐसे में यदि कोई नया मोर्चा बनता है, जिसमें पवन सिंह का भोजपुरी बेल्ट में प्रभाव और मनीष कश्यप का युवाओं में समर्थन आधार बनता है, तो यह पारंपरिक पार्टियों के लिए चुनौती बन सकता है।राजनीतिक दृष्टि से यह मुलाकात एक संकेत मानी जा रही है, मगर इसके पीछे की रणनीति पर अब तक दोनों की ओर से कोई औपचारिक बयान नहीं आया है। हालांकि, मनीष कश्यप पहले भी इशारा कर चुके हैं कि वह अब “जनसरोकार की राजनीति” करेंगे और किसी दल विशेष की सीमाओं में नहीं बंधेंगे। दूसरी ओर, पवन सिंह भी चुनावी हार के बाद खुलकर पार्टी लाइन से अलग खड़े नजर आए हैं। ऐसे में इन दोनों का मिलना केवल व्यक्तिगत संबंध नहीं, बल्कि राजनीतिक तैयारी का एक हिस्सा माना जा रहा है।
बिहार में विधानसभा चुनाव में अभी वक्त है, लेकिन उसकी भूमिका अब बननी शुरू हो चुकी है। युवा मतदाता, क्षेत्रीय असंतोष, बेरोजगारी, शिक्षा, और सरकारी जवाबदेही जैसे मुद्दे चुनाव में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। इन मुद्दों पर मनीष कश्यप लगातार मुखर रहे हैं। वहीं पवन सिंह ने भी सामाजिक मंचों से कई बार आमजन से जुड़े सवाल उठाए हैं।यदि दोनों मिलकर कोई पहल करते हैं, तो इसका असर पारंपरिक राजनीति पर पड़ना तय है। अभी तक चुनावी राजनीति का संचालन पारंपरिक दलों, जातीय ध्रुवीकरण और गठबंधन की गणनाओं पर आधारित रहा है। लेकिन सोशल मीडिया के इस युग में जब चेहरों की लोकप्रियता वोट में बदलने लगी है, तो मनीष-पवन जैसे नए चेहरे समीकरण बदल सकते हैं।
बिहार में मनोज तिवारी, रवि किशन और दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ जैसे कलाकार पहले ही सियासत में कदम रख चुके हैं, और इनमें से कई ने संसद तक की यात्रा भी की है। लेकिन पवन सिंह और मनीष कश्यप का तालमेल थोड़ा अलग रंग लिए हुए है। यह सिर्फ अभिनय या लोकप्रियता का मेल नहीं, बल्कि एक सामाजिक सवाल उठाने वाले व्यक्ति और एक जनप्रिय कलाकार की संभावित साझेदारी है।सूत्रों की मानें तो लखनऊ की मुलाकात केवल सौजन्य भेंट नहीं थी। इसमें सामाजिक न्याय, रोजगार, कानून व्यवस्था जैसे विषयों पर गंभीर चर्चा हुई। मनीष कश्यप पहले ही यह साफ कर चुके हैं कि वे युवाओं के लिए वैकल्पिक नेतृत्व बनना चाहते हैं। वहीं पवन सिंह भी इस समय खुले मंच से बोलने के लिए स्वतंत्र हैं। भविष्य की राजनीतिक दिशा क्या होगी, यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी, लेकिन यह तय है कि दोनों चेहरों के इर्द-गिर्द जो माहौल बन रहा है, वह किसी नए प्रयोग की तैयारी का संकेत दे रहा है। मुमकिन है आने वाले समय में कोई नया राजनीतिक दल या मोर्चा बने, या ये दोनों किसी मौजूदा गठबंधन से जुड़ें। फिलहाल बिहार की जनता इस तस्वीर के मायने समझने में जुटी है और राजनीतिक हलकों में यह मुलाकात एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम के रूप में दर्ज हो चुकी है।