बंगाल विधानसभा प्रस्ताव पर घमासान आतंक की निंदा या वोटबैंक की रणनीति?

अजय कुमार,वरिष्ठ पत्रकार
10 जून 2025 को पश्चिम बंगाल विधानसभा में लाया गया एक प्रस्ताव, जो मूलतः जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले की निंदा और भारतीय सेना के शौर्य की सराहना करने के लिए था, अब राष्ट्रीय राजनीति में विवाद का विषय बन गया है। इस प्रस्ताव में कई ऐसे तथ्य छूट गए जिनका उल्लेख ना होना केंद्र सरकार, बीजेपी और जनता के एक वर्ग को चुभ गया। मुख्य विवाद इस बात को लेकर खड़ा हुआ कि इस प्रस्ताव में न पाकिस्तान का स्पष्ट नाम लिया गया और ना ही भारतीय सेना की जवाबी कार्रवाई ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का जिक्र किया गया। यह वही ऑपरेशन है, जिसमें भारत ने 7 मई 2025 को पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) के आतंकी ठिकानों पर बड़ी सैन्य कार्रवाई कर 100 से अधिक आतंकियों को ढेर कर दिया था। सवाल यह नहीं है कि प्रस्ताव में आतंकवाद की निंदा की गई या नहीं, सवाल यह है कि क्या ममता सरकार ने जानबूझकर इस प्रस्ताव को वोटबैंक संतुलन के लिहाज से तौला?
बीजेपी के नेता शुभेंदु अधिकारी और अग्निमित्रा पॉल ने विधानसभा में इस प्रस्ताव पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने सवाल किया कि जब देशभर में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर गर्व और सम्मान की लहर थी, तब ममता सरकार ने उस ऐतिहासिक कार्रवाई का उल्लेख क्यों नहीं किया? उन्होंने आरोप लगाया कि यह ममता बनर्जी की जानबूझकर की गई रणनीति थी ताकि अल्पसंख्यक वोट बैंक की भावना को न ठेस पहुंचे। पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी 30 फीसदी से अधिक है और ममता बनर्जी लगातार इस वर्ग का राजनीतिक समर्थन हासिल करती रही हैं। विपक्ष का आरोप है कि ममता बनर्जी आतंकवाद के विरोध में मजबूती से खड़े होने के बजाय तटस्थ और अस्पष्ट भाषा का उपयोग कर रही हैं ताकि इस वर्ग के भीतर कोई राजनीतिक असहजता पैदा न हो।
प्रस्ताव में जिस तरह की शब्दावली इस्तेमाल की गई, उसने पाकिस्तान की भूमिका को धुंधला कर दिया। जबकि केंद्र सरकार और भारतीय खुफिया एजेंसियों ने पहलगाम हमले के पीछे लश्कर-ए-तैयबा की भूमिका को स्पष्ट किया था, जो पाकिस्तान की शह पर चलने वाला आतंकी संगठन है। इतना ही नहीं, प्रस्ताव में यह भी नहीं बताया गया कि पहलगाम हमले में मारे गए लोगों में तीन बंगाल निवासी भी थे और वे आम पर्यटक थे जिन्हें उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर निशाना बनाया गया। खबरों के अनुसार, आतंकियों ने पर्यटकों से कलमा पढ़वाया और यहां तक कि उनका खतना हुआ है या नहीं, यह पूछने जैसी धार्मिक रूप से उकसाने वाली हरकतें भी की गईं। इसके पीछे मकसद सिर्फ भय फैलाना नहीं बल्कि कश्मीर की पर्यटन अर्थव्यवस्था और सांप्रदायिक सद्भाव को तोड़ना भी था।
जब यह सवाल उठा कि प्रस्ताव में ऑपरेशन सिंदूर का उल्लेख क्यों नहीं किया गया, तो TMC के मंत्री ब्रात्य बसु ने जवाब दिया कि “ऑपरेशन सिंदूर सेना का सैन्य ऑपरेशन था, न कि किसी राजनीतिक दल की उपलब्धि। हम सेना के हर प्रयास की सराहना करते हैं, पर हम उसका राजनीतिक उपयोग नहीं करना चाहते।” वहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस मुद्दे पर और भी तीखा बयान देते हुए केंद्र सरकार को घेरा और कहा कि “जब खुफिया एजेंसियां पूरी तरह फेल हो गईं और निर्दोष नागरिक मारे गए, तब केंद्र सरकार को आत्ममंथन करना चाहिए। क्या अब मोदी सरकार ऑपरेशन सिंदूर के बाद ऑपरेशन बंगाल शुरू करेगी?” उनका इशारा बीजेपी द्वारा इस पूरे घटनाक्रम को चुनावी मुद्दा बनाने की ओर था।
बीजेपी इस बयान से और आक्रामक हो गई। पार्टी ने टीएमसी पर देश की सुरक्षा और सेना की गरिमा से खिलवाड़ करने का आरोप लगाया। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने तो यहां तक कह दिया कि यह प्रस्ताव पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर फायदा पहुंचाने वाला साबित हो सकता है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान हमेशा यह कहता आया है कि भारत में सभी राज्य और पार्टियां पाकिस्तान को आतंक का स्रोत नहीं मानतीं। अब जब बंगाल विधानसभा में पारित प्रस्ताव में पाकिस्तान का नाम नहीं लिया गया, तो पाकिस्तान इस बात को बढ़ा-चढ़ाकर अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं जैसे FATF और UNHRC में पेश कर सकता है और अपने ऊपर लगे आतंकवाद के समर्थन के आरोपों को कमजोर कर सकता है।
यह मुद्दा अब राज्य की सीमा से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति का हिस्सा बन गया है। बीजेपी इस प्रस्ताव को लेकर बड़े स्तर पर अभियान चला रही है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां उसकी राजनीतिक पकड़ तेज़ी से बढ़ रही है। बंगाल में भाजपा पहले ही मुस्लिम वोट बैंक के वर्चस्व को चुनौती देती रही है और अब उसे ऐसा मुद्दा मिल गया है जिससे वह खुद को राष्ट्रवाद के सच्चे प्रहरी के रूप में प्रस्तुत कर सकती है। दूसरी ओर, ममता बनर्जी भी पीछे नहीं हैं। उन्होंने प्रस्ताव के जरिए एक तरफ सेना की बहादुरी की सराहना कर अपना संतुलन बनाए रखा है, तो दूसरी ओर पाकिस्तान या ऑपरेशन सिंदूर का नाम हटाकर अपने वोट बैंक को नाराज़ नहीं किया है।सवाल यह है कि क्या अब देश में आतंकवाद और उस पर जवाबी कार्रवाई जैसे गंभीर मुद्दे भी राजनीतिक बंटवारे का शिकार बन जाएंगे? क्या एक राज्य की विधानसभा में पारित प्रस्ताव से राष्ट्रीय नीति की गंभीरता को प्रभावित किया जा सकता है? और क्या पाकिस्तान वास्तव में इस मौके को भुनाने की कोशिश करेगा?जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान इस प्रस्ताव को हाथ में लेकर यह दिखा सकता है कि भारत की सभी सरकारें या राज्य उसके खिलाफ नहीं हैं। FATF जैसे मंचों पर जहां पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से निकलने के लिए सबूत देने होते हैं कि वह आतंकवाद का समर्थन नहीं करता, वहां यह प्रस्ताव उसके लिए हथियार बन सकता है। ऐसे समय में जबकि भारत की कूटनीतिक नीति आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक समर्थन को एकत्र करने की दिशा में काम कर रही है, बंगाल विधानसभा का यह प्रस्ताव एक उलझन खड़ी करता है।
यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब बंगाल में 2026 के विधानसभा चुनाव की तैयारियाँ तेज़ हो चुकी हैं। टीएमसी लगातार चौथी बार सत्ता में आने की तैयारी कर रही है, जबकि बीजेपी ने राज्य में अपने जनाधार को पहले से कहीं अधिक बढ़ाया है। दोनों दल अब ऐसे हर मुद्दे को भुनाना चाहेंगे जो उनके पक्ष में जनसहयोग को मजबूत करे।संक्षेप में कहें तो यह प्रस्ताव आतंकवाद की निंदा से अधिक अब वोटबैंक की रणनीति, राजनीतिक ध्रुवीकरण और कूटनीतिक चिंताओं का विषय बन चुका है। ऑपरेशन सिंदूर का जिक्र ना होना अब सिर्फ एक शब्द की चूक नहीं, बल्कि बंगाल और भारत की राजनीति के बीच एक और वैचारिक खाई बनता जा रहा है। आने वाले दिनों में यह देखा जाना दिलचस्प होगा कि क्या यह मुद्दा ममता को चौथी बार सत्ता तक ले जाएगा या बीजेपी के राष्ट्रवाद के हथियार को और धार देगा।