चिराग पासवान का फ्रंट फुट गेम चुनाव से पहले नीतीश को चिट्ठी से दी सियासी चेतावनी

अजय कुमार,वरिष्ठ पत्रकार
बिहार की राजनीति में चिराग पासवान एक बार फिर से केंद्र में आ चुके हैं। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख और केंद्र सरकार में मंत्री चिराग पासवान इस बार न सिर्फ सक्रिय नजर आ रहे हैं बल्कि आक्रामक तेवर में भी हैं। जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव की तारीख करीब आती जा रही है, चिराग पासवान अपनी सियासी मौजूदगी को मजबूती से दर्ज कराने में जुट गए हैं। उन्होंने न सिर्फ आगामी चुनाव लड़ने का ऐलान किया है, बल्कि हालिया एक दलित बच्ची के साथ हुई वीभत्स घटना को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। 26 मई को मुजफ्फरपुर के कुढ़नी थाना क्षेत्र में 9 साल की एक दलित बच्ची के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ, जिसकी वजह से बच्ची को गंभीर अवस्था में पीएमसीएच रेफर किया गया, लेकिन अस्पताल की लापरवाही और स्वास्थ्य व्यवस्था की दुर्दशा के चलते उसे कई घंटे तक एंबुलेंस में तड़पना पड़ा और अंततः 1 जून को उसकी मौत हो गई। यह घटना राज्यभर में आक्रोश का कारण बन गई है और चिराग पासवान ने इसे राज्य के पूरे सिस्टम की विफलता करार दिया है।
इस घटना के बाद चिराग पासवान ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक कठोर पत्र लिखते हुए तीन प्रमुख मांगें रखीं। पहली, दुष्कर्मियों को तत्काल गिरफ्तार कर उन्हें कठोरतम सजा दी जाए; दूसरी, पीएमसीएच अस्पताल के डॉक्टरों, कर्मचारियों और प्रबंधन की उच्च स्तरीय न्यायिक जांच कराई जाए; और तीसरी, जिन अधिकारियों और चिकित्सकों ने जानबूझकर इलाज में देरी की, उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर तत्काल निलंबन हो। चिराग ने कहा कि यह सिर्फ एक बच्ची की हत्या नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज के संवेदनहीन हो चुके तंत्र की सच्चाई को उजागर करती है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अगर शासन मौन रहा, तो यह मौन भी सबसे बड़ा अपराध बन जाएगा। उनके इस पत्र ने बिहार की राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे दिया है।
हालांकि नीतीश कुमार की सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कई अधिकारियों को सस्पेंड किया है और मामले की जांच के लिए विशेष टीम गठित की है। आरोपी को गिरफ्तार किया जा चुका है और अस्पताल के सुपरिटेंडेंट तक को उनके पद से हटा दिया गया है। बावजूद इसके चिराग पासवान ने सरकार की कार्रवाई को अपर्याप्त बताया है और कहा है कि यह सिर्फ एक दिखावा है ताकि जनता का गुस्सा शांत किया जा सके। उनका कहना है कि इस पूरे मामले में जब तक उच्चस्तरीय न्यायिक जांच नहीं होती, तब तक पीड़िता को इंसाफ नहीं मिलेगा।
चिराग पासवान की सियासी रणनीति अब बहुत साफ नजर आने लगी है। वे एक बार फिर 2020 के विधानसभा चुनाव जैसी ही आक्रामक मुद्रा में हैं, जब उन्होंने एनडीए का हिस्सा होते हुए भी जेडीयू के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतार दिए थे। उस समय चिराग ने खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘हनुमान’ बताया था और खुले तौर पर नीतीश कुमार की सरकार को ‘भ्रष्ट’ और ‘विफल’ करार दिया था। उनकी इस रणनीति ने जेडीयू को भारी नुकसान पहुंचाया था। पार्टी महज 43 सीटों पर सिमट गई थी और माना गया कि लगभग 30 से 35 सीटों पर चिराग पासवान की पार्टी ने जेडीयू के वोट काटे। उस समय जेडीयू नेताओं ने उन्हें ‘वोटकटवा’ कहा था।
अब एक बार फिर चिराग उसी राह पर बढ़ते नजर आ रहे हैं। उनका बयान, गतिविधियाँ और मुद्दों पर नीतीश सरकार को कठघरे में खड़ा करना इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। वे भले ही सार्वजनिक रूप से कह रहे हों कि मुख्यमंत्री पद के लिए नीतीश कुमार ही उनकी पसंद हैं और इस पद के लिए कोई ‘वैकेंसी’ नहीं है, लेकिन उनकी पार्टी की गतिविधियाँ कुछ और ही संकेत दे रही हैं। चिराग पासवान की पार्टी उन्हें ही मुख्यमंत्री पद के वैकल्पिक चेहरे के रूप में स्थापित करने की दिशा में काम कर रही है। दलितों की पीड़ा और जनभावनाओं को लेकर चिराग जिस प्रकार से आंदोलनात्मक तेवर दिखा रहे हैं, उससे साफ है कि वे एक संवेदनशील नेता की छवि गढ़ना चाहते हैं जो न सिर्फ दलितों के बल्कि आम जनता के मुद्दों पर भी मुखर रूप से बोलता है।
बिहार की राजनीति में चिराग पासवान का यह रूप एक नई परिघटना के रूप में देखा जा रहा है। वे अब सिर्फ एक दलित नेता नहीं रहना चाहते, बल्कि राज्य की राजनीति में अपने पिता रामविलास पासवान की तरह एक सर्वस्वीकार्य नेता की छवि बनाना चाहते हैं। उनके हालिया बयान और जनता से संवाद की शैली यह संकेत देती है कि वे राज्य में एक मजबूत सियासी विकल्प बनने की दिशा में लगातार प्रयासरत हैं। वे अपनी पार्टी को सिर्फ एक क्षेत्रीय दल नहीं रहने देना चाहते बल्कि उसे राज्यव्यापी प्रभाव वाली ताकत में तब्दील करना चाहते हैं।
चुनाव लड़ने की उनकी घोषणा को इसी सियासी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। चिराग ने साफ कहा है कि अगर पार्टी की सफलता दर बढ़ सकती है तो वे खुद चुनावी मैदान में उतरेंगे। यह संकेत न केवल उनके आत्मविश्वास को दिखाता है बल्कि यह भी बताता है कि वे अब सिर्फ ‘बाहरी’ नेता नहीं बनना चाहते, बल्कि विधानसभा के जरिए राज्य की राजनीति में स्थायी भूमिका निभाना चाहते हैं। इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए खुद को ‘मोदी भक्त’ बताया है और भाजपा के साथ अपने रिश्तों को मज़बूत बनाए रखा है। लेकिन जेडीयू के साथ उनकी तल्खी और तीखे हमले एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर रहे हैं कि क्या वे 2025 के चुनाव में फिर से जेडीयू के खिलाफ एनडीए के भीतर रहकर मोर्चा खोलेंगे।
राज्य की राजनीति में इस तरह चिराग पासवान एक बार फिर से चर्चा के केंद्र में आ चुके हैं। एक ओर वे जनता के दुख-दर्द पर संवेदना दिखा रहे हैं, दूसरी ओर सरकार के खिलाफ आक्रामक हमलों से यह जाहिर कर रहे हैं कि वे अब चुप बैठने वाले नहीं हैं। उनके इस बदले हुए सियासी तेवर ने नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। आने वाले समय में अगर चिराग पासवान इसी रफ्तार से जनता के मुद्दों पर सरकार को घेरते रहे तो यह तय है कि वे न सिर्फ जेडीयू बल्कि पूरे एनडीए के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि बिहार की राजनीति में चिराग पासवान अब एक निर्णायक चेहरा बनने की दिशा में मजबूती से कदम बढ़ा चुके हैं।