आकाश आनंद की वापसी के बहाने चंद्रशेखर पर बरसीं मायावती, विपक्ष पर भी साधा निशाना

उत्तर प्रदेश की दलित राजनीति में एक बार फिर उबाल है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सुप्रीमो मायावती ने अप्रत्यक्ष रूप से आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद पर तीखा हमला बोला है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर मायावती ने कई पोस्ट साझा करते हुए अपने भतीजे आकाश आनंद की बसपा में वापसी को लेकर उठी बेचैनी पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने लिखा कि आकाश आनंद के दोबारा नेशनल कोऑर्डिनेटर बनने से कुछ लोगों में असहजता दिखाई दे रही है, जो स्वाभाविक है। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने जिस अंदाज़ में अपनी बात रखी, उससे राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। उन्होंने चंद्रशेखर आजाद का नाम लिए बिना उन्हें “बरसाती मेंढक” कहा और आरोप लगाया कि कुछ लोग कांग्रेस, भाजपा, सपा और आम आदमी पार्टी के इशारों पर निजी स्वार्थ के लिए राजनीति कर रहे हैं और विधायक या सांसद तो बन सकते हैं, लेकिन इससे दलित समाज का कोई भला नहीं होने वाला।

यह बयान ऐसे समय आया है जब चंद्रशेखर आजाद ने हाल ही में लखनऊ के एक मुस्लिम जलसे में यह दावा किया था कि उनकी पार्टी ही असल में बाबा साहब अंबेडकर के विचारों और विरासत की असली प्रतिनिधि है। इस बयान को बसपा के अस्तित्व और विचारधारा को चुनौती के रूप में देखा गया। मायावती ने इसका जवाब बेहद आक्रामक अंदाज़ में दिया और चंद्रशेखर पर अब तक का सबसे तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि बसपा ही देश की एकमात्र अंबेडकरवादी पार्टी है, जो बहुजन हित में निरंतर काम कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी में अनुशासन सर्वोपरि है और जिन लोगों ने गलती की है, उन्हें माफी मांगने पर मौका दिया गया है। इसी कड़ी में उन्होंने यह स्पष्ट किया कि आकाश आनंद के राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बावजूद उन्हें पार्टी में दोबारा जिम्मेदारी सौंपना पार्टी हित में है और इससे जो लोग बेचैन हो रहे हैं, वे दरअसल बसपा की ताकत से डरे हुए हैं।

मायावती के इस बयान से यह स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि बसपा अब चंद्रशेखर की चुनौती को हल्के में नहीं ले रही। चंद्रशेखर आजाद ने पिछले कुछ वर्षों में खुद को एक स्वतंत्र दलित नेता के रूप में स्थापित किया है और 2024 के लोकसभा चुनाव में नगीना सीट से जीत दर्ज कर पहली बार संसद पहुंचे। उनकी छवि एक आक्रामक, जमीनी नेता की है, जो सड़कों पर उतरकर बहुजनों के लिए संघर्ष करता है। यह शैली बसपा की पारंपरिक शांत और संस्थागत राजनीति से बिल्कुल अलग है। मायावती, जो लंबे समय से दलित राजनीति की अकेली प्रमुख आवाज रही हैं, शायद चंद्रशेखर को अपने वोटबैंक में सेंध लगाने वाला मानने लगी हैं। यही वजह है कि उन्होंने इतनी तीखी प्रतिक्रिया दी है।

इस पूरे विवाद का केंद्र आकाश आनंद भी हैं, जिन्हें मायावती ने दोबारा बसपा का राष्ट्रीय समन्वयक नियुक्त किया है। आकाश आनंद की वापसी को लेकर पार्टी के भीतर और बाहर दोनों ही जगहों पर चर्चा है। वे युवावर्ग और सोशल मीडिया पर खासे सक्रिय रहे हैं और बसपा को एक आधुनिक और युवा नेतृत्व की ओर ले जाने की क्षमता रखते हैं। हालांकि, पिछले साल उनकी कुछ राजनीतिक गतिविधियों को लेकर उन्हें पार्टी की जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया था। अब जब उन्हें फिर से बड़ी जिम्मेदारी दी गई है, तो राजनीतिक विरोधियों के साथ-साथ बसपा के भीतर के असंतुष्ट तत्व भी असहज हैं। मायावती का यह बयान, जिसमें उन्होंने साफ किया कि पार्टी को अवसरवादी और स्वार्थी लोगों की कोई जरूरत नहीं, एक तरह से भीतरघात की संभावना को भी नकारने की कोशिश है।

इस पूरे घटनाक्रम का असर उत्तर प्रदेश की आगामी राजनीति पर पड़ना तय है। बहुजन समाज पार्टी जहां अपने परंपरागत दलित वोटबैंक को मजबूत बनाए रखने की कोशिश कर रही है, वहीं चंद्रशेखर आजाद की पार्टी दलितों और मुस्लिमों के नए गठजोड़ की राजनीति कर रही है। हाल के वर्षों में कई जगहों पर चंद्रशेखर की पार्टी ने अपने उम्मीदवार उतारे और कुछ क्षेत्रों में ठीकठाक प्रदर्शन भी किया। वे खुद को अंबेडकरवादी विचारधारा का सच्चा प्रतिनिधि बताकर बसपा को चुनौती दे रहे हैं। लेकिन बसपा का संगठनात्मक ढांचा और जमीनी पकड़ अब भी मजबूत मानी जाती है, खासकर पश्चिमी और पूर्वी उत्तर प्रदेश में।

हालांकि, इस पूरी राजनीतिक खींचतान में एक बड़ा सवाल यह भी है कि दलित समाज को इससे क्या लाभ मिलेगा? मायावती का आरोप है कि विधायक, सांसद और मंत्री बनने की लालसा में कुछ लोग बाहरी पार्टियों के साथ साठगांठ कर रहे हैं, जिससे दलितों की एकता कमजोर हो रही है। उनका इशारा यह भी है कि सिर्फ चुनाव जीतने से दलित समाज का कल्याण नहीं होता, जब तक कि उसकी राजनीतिक चेतना और संगठन नहीं बनता। दूसरी ओर, चंद्रशेखर की राजनीति अधिक प्रतिरोधात्मक और जन आंदोलन आधारित है, जिससे युवाओं को जुड़ाव महसूस होता है।

वर्तमान परिस्थिति में ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेश में दलित राजनीति एक बार फिर से दो राहों पर खड़ी है। एक ओर मायावती हैं, जो संगठनात्मक अनुशासन, पार्टी की परंपराओं और अपने भतीजे के सहारे नेतृत्व को सशक्त बनाने की राह पर हैं। दूसरी ओर चंद्रशेखर हैं, जो सड़क पर संघर्ष, जनसभाओं और प्रतिरोध की राजनीति के माध्यम से खुद को स्थापित कर रहे हैं। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि दलित वोटर इन दोनों विकल्पों में किसे चुनता है और क्या इस टकराव से दलित राजनीति को एक नई दिशा मिलती है या यह विभाजन उसे और कमजोर कर देगा। इतना तय है कि मायावती का यह हमला केवल एक बयान नहीं, बल्कि आने वाले चुनावों की रणनीति का हिस्सा है, और चंद्रशेखर भी इस चुनौती को हल्के में नहीं लेंगे। राजनीति में जब विचार और वर्चस्व दोनों टकराते हैं, तो उसका असर न सिर्फ दलों पर बल्कि समाज की दिशा पर भी पड़ता है।

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