बहराइच दरगाह मेले पर रोक के बीच भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा अध्यक्ष ने चढ़ाई चादर

भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी का शुक्रवार को बहराइच में सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर चादर चढ़ाने और जियारत करने का मामला सुर्खियों में आ गया है। यह वही सालार मसूद गाजी हैं, जिन्हें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहले “आक्रांता” करार दे चुके हैं। ऐसे में भाजपा के एक शीर्ष मुस्लिम नेता द्वारा इस दरगाह पर चादर चढ़ाना न सिर्फ राजनीतिक गलियारों में हलचल पैदा कर रहा है बल्कि यह भाजपा की रणनीति में आए बदलाव का संकेत भी माना जा रहा है। इस मौके पर जमाल सिद्दीकी ने यह कहकर भी सबको चौंकाया कि “हम सभी श्रीराम के वंशज हैं”, क्योंकि सनातन धर्म इस्लाम से पहले से मौजूद है।

जमाल सिद्दीकी के इस दौरे को राजनीतिक नजरिए से देखा जा रहा है, खासतौर पर उन इलाकों में जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है और 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए भाजपा अपनी सॉफ्ट अल्पसंख्यक रणनीति पर काम कर रही है। हालांकि, यह दौरा विवादों से भी अछूता नहीं रहा। दरगाह पर चादर चढ़ाने के कुछ ही देर बाद उन्होंने जम्मू-कश्मीर के भाजपा नेता रणवीर सिंह पठानिया के हालिया ‘ऑपरेशन सिंदूर’ बयान की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने संभवतः “भांग पीकर” ऐसा बयान दिया होगा, जिसकी वह निंदा करते हैं। इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि भाजपा के भीतर भी अब कुछ नेता पार्टी लाइन से हटकर धार्मिक मसलों पर खुलकर बोलने लगे हैं, खासकर जब मुस्लिम समुदाय की भावनाओं की बात आती है।

वहीं दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश के ही लखीमपुर खीरी जिले के मुर्तिहा रेंज के जंगलों में स्थित बाबा लक्कड़शाह की दरगाह पर इस साल जेठ महीने में लगने वाला सालाना मेला वन विभाग द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया। यह मेला 16वीं सदी से लगातार लग रहा था और स्थानीय लोगों की धार्मिक आस्था का केंद्र बना हुआ था। इस बार जब जायरीन दरगाह की ओर रवाना हुए, तो उन्हें वन विभाग, पुलिस और पीएसी द्वारा बैरियर पर ही रोक दिया गया। नतीजा यह हुआ कि सैकड़ों श्रद्धालुओं को मायूस लौटना पड़ा। इनमें लखीमपुर खीरी के गजियापुर गांव निवासी संजय पासवान भी शामिल थे, जो अपने बेटे का मुंडन करवाने पूरे परिवार के साथ आए थे।

श्रद्धालुओं की शिकायत थी कि उन्हें न तो कोई स्पष्ट जानकारी दी गई और न ही कोई वैकल्पिक व्यवस्था की गई। वहीं वन विभाग का कहना है कि यह मेला जंगल क्षेत्र में लगता है जिससे वन्य जीवों को नुकसान पहुंच सकता है। हालांकि इस धार्मिक आयोजन पर अचानक पाबंदी से सामाजिक नाराजगी भी पनप रही है, खासकर तब जब यह आयोजन सदियों से बिना किसी बाधा के चलता आ रहा था।

बाबा लक्कड़शाह की दरगाह का अपना ऐतिहासिक महत्व है। इनका असली नाम सैयद शाह हुसैन था और इन्हें “लक्कड़ फकीर” के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वे गुरु गोविंद सिंह के समय में जीवित थे और उनकी मृत्यु 1010 हिजरी यानी 1610 ईस्वी में हुई थी। उनके बारे में एक लोककथा प्रचलित है कि जब वे फूस की झोपड़ी में तपस्या कर रहे थे, तो गुरु नानक स्वयं उनसे मिलने आए थे और उनके जीवन में चमत्कारी बदलाव हुआ। गुरु नानक ने ही उन्हें ‘लक्कड़शाह’ नाम दिया, क्योंकि तपस्या के कारण उनका शरीर लकड़ी जैसा हो गया था। उनकी दरगाह के पास ही गुरुमल टेकरी नामक एक गुरुद्वारा भी है, जो हिन्दू-मुस्लिम-सिख एकता का प्रतीक माना जाता है।

इन दोनों घटनाओं को यदि समग्र रूप में देखा जाए, तो यह स्पष्ट होता है कि उत्तर प्रदेश की धार्मिक राजनीति में एक बार फिर से नई करवट देखने को मिल रही है। एक तरफ भाजपा नेता मुस्लिम धार्मिक स्थलों पर जाकर समुदाय से संवाद बढ़ा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर प्रशासन द्वारा परंपरागत मुस्लिम धार्मिक मेलों पर पाबंदी लगाई जा रही है। यह द्वैत नीतियां सरकार की मजबूरियों और राजनीतिक संतुलन साधने की कोशिशों को भी उजागर करती हैं।

सवाल यह भी उठता है कि क्या भाजपा अपनी रणनीति में बदलाव कर रही है या फिर यह सिर्फ दिखावटी सांप्रदायिक सौहार्द की राजनीति है। जमाल सिद्दीकी का खुद को श्रीराम का वंशज कहना और साथ ही दरगाहों पर चादर चढ़ाना यह बताने के लिए काफी है कि भाजपा अब अपने पुराने छवि से थोड़ा हटकर मुस्लिम मतदाताओं को साधने की कोशिश कर रही है। वहीं दूसरी ओर, लक्कड़शाह बाबा के मेले पर प्रतिबंध यह संकेत देता है कि प्रशासनिक सख्ती धार्मिक भावनाओं पर भारी पड़ रही है।

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