ऑपरेशन सिंदूर से बूथ विजय तक मोदी ने बिहार में रच दी चुनावी पटकथा

अजय कुमार,वरिष्ठ पत्रकार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दो दिवसीय बिहार दौरा कई मायनों में ऐतिहासिक और सियासी दृष्टिकोण से बेहद अहम रहा। इस दौरे ने जहां विकास की योजनाओं की बौछार कर राज्य को कई सौगातें दीं, वहीं चुनावी रणनीति का वो खाका भी खींच दिया जिसके सहारे बीजेपी और एनडीए 2025 के विधानसभा चुनाव में उतरने की तैयारी में है। इस पूरे दौरे की शुरुआत ही बेहद प्रतीकात्मक तरीके से हुई, जब प्रधानमंत्री ने पटना एयरपोर्ट के नए टर्मिनल भवन का उद्घाटन किया और बिहटा एयरपोर्ट के सिविल एन्क्लेव की नींव रखी। इसके साथ ही उन्होंने पटना से लंदन और पेरिस के लिए सीधी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों की शुरुआत की भी घोषणा की। इन घोषणाओं से साफ संदेश था कि केंद्र सरकार बिहार को वैश्विक स्तर पर जोड़ने के लिए कितनी गंभीर है।

इसके तुरंत बाद पीएम मोदी का चार किलोमीटर लंबा रोड शो हुआ जिसने पूरे पटना को एक सियासी उत्सव का रूप दे दिया। इनकम टैक्स गोलंबर से बीजेपी कार्यालय तक निकले इस रोड शो में हजारों की संख्या में लोग उमड़े। लोग ‘भारत माता की जय’ और ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाते नजर आए। सड़कों पर देशभक्ति के गानों की गूंज थी, सिर पर केसरिया पगड़ियां, हाथों में ब्रह्मोस और राफेल जैसे मिसाइलों के प्रतीक और टी-शर्ट्स पर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का लोगो इस रोड शो को एक भावनात्मक और राष्ट्रवादी रंग दे रहे थे। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के नाम से एक एनिमेटेड फिल्म भी इस दौरान चलाई गई, जिसने बीजेपी की राष्ट्रशक्ति की रणनीति को मजबूत किया। यह रोड शो ना सिर्फ सियासी शो ऑफ था, बल्कि एक तरीके से यह बिहार में राष्ट्रवाद को चुनावी मुद्दा बनाने की पहली आधिकारिक घोषणा भी थी।

बीजेपी दफ्तर पहुंचने के बाद प्रधानमंत्री ने अटल सभागार में पार्टी के सभी प्रमुख नेताओं के साथ एक विशेष बैठक की। इस बैठक में बिहार चुनाव की रणनीति, बूथ स्तर की मजबूती और पार्टी के कार्यकर्ताओं के समर्पण पर बात हुई। प्रधानमंत्री मोदी ने यह स्पष्ट कर दिया कि बिहार में जीत का मंत्र सिर्फ और सिर्फ बूथ जीतने से ही निकलेगा। उन्होंने हर एक बूथ पर सौ वीडियो बनाने और सोशल मीडिया को पूरी तरह से एक्टिव रखने की अपील की। कार्यकर्ताओं को हिदायत दी कि लोगों की समस्याएं सुनें, उनका समाधान करें और सरकार की योजनाओं को हर व्यक्ति तक पहुंचाएं। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि पार्टी के नेताओं को संघ, विश्व हिंदू परिषद और विद्यार्थी परिषद जैसे संगठनों के साथ समन्वय में रहना होगा। उनका यह बयान स्पष्ट संकेत था कि बीजेपी अपनी मूल विचारधारा और संगठनों के समर्पण से 2025 की चुनावी लड़ाई लड़ने वाली है।

इस संवाद के दौरान पीएम मोदी ने नेताओं से वन टू वन बातचीत भी की, उन्हें पार्टी के प्रति वफादारी का पाठ पढ़ाया और राष्ट्रभक्ति को चुनावी अभियान का मूल आधार बताया। उन्होंने कहा कि धैर्य से काम लें, क्योंकि जिसने धैर्य खोया वो राजनीति से बाहर हो गया। खुद की मिसाल देते हुए उन्होंने कहा कि डेढ़ दशक तक वह पीछे की कतार में रहे, लेकिन धैर्य ने उन्हें आज इस स्थान पर पहुंचाया है। यह संवाद ना केवल प्रेरणादायक था, बल्कि कार्यकर्ताओं को भावनात्मक रूप से जोड़ने की एक गहरी रणनीति भी थी। उन्होंने पार्टी से बगावत करने और निर्दलीय चुनाव लड़ने वालों को भी कड़ी चेतावनी दी और स्पष्ट कर दिया कि अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

इस राजनीतिक बैठक के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सीधे बिहार के डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा के घर पहुंचे, जहां उनके बेटे गोविंद की रिंग सेरेमनी आयोजित थी। इस कार्यक्रम में शिरकत कर पीएम मोदी ने वर-वधू को आशीर्वाद दिया और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की। लेकिन यह केवल सामाजिक शिष्टाचार नहीं था, बल्कि इसके पीछे गहरी सियासी रणनीति भी छिपी थी। विजय सिन्हा बिहार की भूमिहार जाति से आते हैं, जो राज्य में बीजेपी का कोर वोटबैंक मानी जाती है। भूमिहारों की संख्या भले ही तीन फीसदी हो, लेकिन उनका प्रभाव खास तौर पर शहरी और उच्च शिक्षित वर्ग में काफी अधिक है। पीएम मोदी का उनके घर जाना भूमिहार समुदाय को सम्मान देने और बीजेपी के साथ उनके संबंधों को और मजबूत करने का संकेत था।

दूसरे दिन यानी 30 मई को पीएम मोदी बिक्रमगंज पहुंचे, जहां उन्होंने एक विशाल जनसभा को संबोधित किया। यह रैली हर दृष्टिकोण से बड़ी थी भीड़, मुद्दे और संदेश तीनों ही स्तरों पर। उन्होंने इस जनसभा में एक बार फिर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का उल्लेख करते हुए कहा कि यह सिर्फ सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि भारत की आंतरिक शक्ति का प्रतीक है। इसके साथ ही उन्होंने बिहार में लालू परिवार पर करारा हमला किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस चुनाव में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा होगा और लालू यादव परिवार के पुराने घोटाले फिर से जनता के सामने लाए जाएंगे। उन्होंने जनता से अपील की कि वे झूठे वादों और भावनात्मक नारों के जाल में ना फंसें, बल्कि विकास और राष्ट्रवाद के आधार पर वोट करें।

इस जनसभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी उपस्थित थे, जिन्होंने पीएम मोदी का स्वागत करते हुए एनडीए सरकार की उपलब्धियों का उल्लेख किया। हालांकि उन्होंने मंच से भाषण देते समय गलती से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का नाम ले लिया, जिसे उन्होंने तुरंत सुधार लिया। यह छोटी सी चूक सियासी हलकों में चर्चा का विषय बन गई, लेकिन इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि नीतीश कुमार अब पूरी तरह से एनडीए के रंग में रंग चुके हैं और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व को स्वीकार कर चुके हैं।

प्रधानमंत्री ने इस दौरे के दौरान बिहार को 50,000 करोड़ रुपये की विकास योजनाओं की सौगात दी, जिसमें सड़कों, रेलवे, हवाई अड्डों और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी परियोजनाएं शामिल थीं। उन्होंने बताया कि यह उनका बिहार का 50वां दौरा है और यह केवल संयोग नहीं, बल्कि राज्य के प्रति उनके प्रेम और प्रतिबद्धता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि बिहार अब बीते जमाने की राजनीति से बाहर निकलकर नए युग में प्रवेश कर रहा है और इसमें बीजेपी की भूमिका निर्णायक होगी।

दूसरी तरफ, विपक्षी दलों में खलबली मची हुई है। राष्ट्रीय जनता दल के भीतर तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव के बीच चल रही लड़ाई ने नया मोड़ ले लिया है। लालू यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप को पार्टी से निष्कासित कर दिया है, जिससे पार्टी की छवि और कार्यकर्ताओं का मनोबल प्रभावित हुआ है। इस स्थिति का फायदा बीजेपी को मिलना तय है, खासकर तब जब बीजेपी पूरी एकजुटता के साथ बूथ स्तर पर मजबूत हो रही है।

इन सबके बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह दौरा एक मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ। उन्होंने एक ही मंच से विकास, राष्ट्रवाद, संगठन, जातीय समीकरण और विपक्ष के भ्रष्टाचार को चुनावी मुद्दा बनाकर 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव की पटकथा लिख दी है। अब देखना यह होगा कि क्या यह रणनीति एनडीए को फिर से सत्ता दिला पाएगी, या बिहार की राजनीति एक बार फिर किसी अप्रत्याशित मोड़ की ओर जाएगी। लेकिन फिलहाल के माहौल में यह कहना गलत नहीं होगा कि पीएम मोदी ने बिहार की सियासी जंग में अपने पहले ही वार से विपक्ष को चौंका दिया है।

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