बिहार की सत्ता का नया ताला बने राजपूत वोट, BJP-RJD में मची जबरदस्त खींचतान

बिहार में भले ही अक्टूबर में विधानसभा चुनाव हो, लेकिन सियासी बिसात अभी से ही बिछाई जाने लगी है. कांग्रेस का फोकस दलित वोटों पर है तो बीजेपी से लेकर जेडीयू और आरजेडी की नजरें राजपूत वोटों पर लगी हैं. राजपूत समुदाय के प्रतीक माने जाने वाले महाराणा प्रताप और वीर कुंवर सिंह के जरिए सियासी दल राजपूत समुदाय के बीच अपनी पैठ जमाने की कवायद करते नजर आ रहे हैं. महाराणा प्रताप की जयंती और वीर कुंवर सिंह की पुण्यतिथि के कार्यक्रम में जिस तरह बीजेपी और आरजेडी के नेता शामिल हुए, उसके सियासी मायने निकाले जा रहे हैं.
16वीं शताब्दी में मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप, जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर के खिलाफ कड़ा प्रतिरोध किया था. महाराणा प्रताप की जयंती 3 दिन पहले 9 मई को थी. वहीं, 26 अप्रैल के वीर कुंवर सिंह की पुण्यतिथि थी. जगदीशपुर के शासक वीर कुंवर सिंह, जिन्होंने बिहार के भोजपुर क्षेत्र में अंग्रेजों के खिलाफ 1857 के विद्रोह की अगुवाई की थी. राजपूत समुदाय से जुड़े ये दोनों प्रतीक माने जाते हैं, जिसके चलते ही राजनीतिक दल उनके जरिए राजपूत वोटों को अपने साथ जोड़ने की कवायद में है.
की पुण्यतिथि पर सारण विकास मंच (एसवीएम) के द्वारा आयोजित कार्यक्रम में तेजस्वी यादव मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए थे. एसवीएम एक गैर-राजनीतिक मंच है, जिसकी बागडोर शैलेंद्र प्रताप सिंह संभाल रहे हैं. सारण विकास मंच ने वीर कुंवर सिंह की 80 फीसदी ऊंची मूर्ती लगाने की मांग रखी, जिस पर तेजस्वी यादव ने कहा कि हमें सरकार बनाने का मौका दें, हम 1857 के नायक कुंवर सिंह की प्रतिमा लगवाने का काम करेंगे.
उन्होंने यह भी कहा कि कुंवर सिंह का घोड़ा 80 फिट ऊंचा होगा, हमें राजपूतों पर बहुत भरोसा है. हमारा समर्थन करें और अगर मैं अपने वादे को पूरा नहीं करता हूं तो अगले चुनाव में हमें सत्ता से बाहर कर दें. तेजस्वी ने यह भी बताया कि उनकी पार्टी में रघुवंश प्रसाद सिंह थे और आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह जैसे प्रमुख राजपूत नेता हैं.
एसवीएम के संयोजक शैलेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं कि हम तेजस्वी यादव को 2025 के विधानसभा चुनावों के बाद बिहार का मुख्यमंत्री बनाने के लिए उनका समर्थन कर रहे हैं. हमने देखा है कि कैसे बीजेपी और जेडीयू ने राजपूत नेताओं के साथ धोखा किया है. केंद्रीय मंत्रिमंडल में बिहार से आठ मंत्री हैं, लेकिन राजपूत समुदाय से कोई भी नहीं है. पिछले विधानसभा चुनावों में एनडीए ने राजपूत उम्मीदवारों को नजरअंदाज किया था. ऐसे में अब हम आरजेडी की ओर देख रहे हैं, जो ए-टू-जेड वाली राजनीति कर रही है.
महाराणा प्रताप के सहारे जेडीयू का दांव
जेडीयू नेता संजय सिंह की ओर से शुक्रवार को पटना में महाराणा प्रताप की जयंती पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शामिल हुए थे. बिहार में एमएलसी संजय सिंह का दावा है कि उन्हीं की पहल पर महाराणा को लोग याद करने लगे. इस दौरान पटना में एमपी वर्मा रोड पर महाराणा प्रताप की मूर्ति स्थापित की. हमारे लिए महाराणा प्रताप समावेशिता के प्रतीक हैं, क्योंकि उनकी सेना में सभी जातियों के लोग शामिल थे. यह बहुत दुखद है कि आज कुछ लोग इतिहास के महान प्रतीकों को जाति और धर्म के चश्मे से देखते हैं. सीएम नीतीश कुमार ही नहीं जेडीयू के तमाम नेता महाराणा प्रताप की जयंती में शिरकत कर बड़ा सियासी संदेश देते नजर आए.
बिहार में राजपूतों की सियासत
बिहार में 2 प्रमुख सवर्ण जातियां है, जिसमें भूमिहार और राजपूत शामिल हैं. भूमिहार समुदाय पारंपरिक बीजेपी मतदाता है जबकि राजपूत समुदाय 2014 से पहले तक आरजेडी के साथ रहा है. फिलहाल बिहार में राजपूत समुदाय बीजेपी के कोर वोटर बन गए हैं. आजादी के बाद से बिहार में कई बड़े राजपूत नेताओं का राजनीतिक दबदबा रहा है. संविधान सभा के सदस्य और बिहार के पहले उपमुख्यमंत्री अनुग्रह नारायण सिन्हा ऐसे ही नेताओं में से एक थे. अनुग्रह नारायण सिन्हा ने राज्य कांग्रेस में बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह के बाद दूसरे नंबर पर काम किया था.
1957 के विधानसभा चुनावों में अनुग्रह नारायण सिन्हा ने भूमिहार समुदाय के सबसे बड़े नेताओं में से एक श्रीकृष्ण सिंह को सीएम पद के लिए असफल चुनौती दी थी. तब से राजपूत नेताओं ने राज्य की राजनीति में बढ़त हासिल करने के लिए संघर्ष किया है. 1969 में कांग्रेस के राजपूत नेता हरिहर सिंह चार महीने के लिए सीएम बने थे. 1983 से 1985 तक एक और राजपूत नेता चंद्रशेखर सिंह कांग्रेस के सीएम रहे. बिहार के आखिरी राजपूत सीएम सिन्हा के बेटे सत्येंद्र नारायण सिन्हा थे, जो 1989 में 9 महीने के लिए कांग्रेस से ही सीएम बने थे.बिहार में सियासत बदलने के साथ ही राजपूत समुदाय का सियासी मिजाज भी बदलता गया. महागठबंधन में कोई बड़ा राजपूत चेहरा नहीं है. जगदानंद सिंह भले ही आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष हैं, लेकिन वो नेता कम आरजेडी के मैनेजर ज्यादा हैं. उनके बेटे सुधाकर सिंह का कद इतना बड़ा नहीं है कि वह राजपूत वोटर्स को अपने पाले में कर सकें. वहीं, नीतीश कुमार पर हमलावर रहने की वजह से आरजेडी उनसे असहज महसूस कर रही है. जेडीयू के एमएलसी संजय सिंह की पहचान एक क्षेत्र तक सीमित है.
बिहार में 28 राजपूत बने विधायक
बिहार के 2020 के विधानसभा चुनाव में कुल 28 राजपूत विधायक जीते थे, जिनमें बीजेपी से 15, जेडीयू से 2, आरजेडी से 7, कांग्रेस से एक, वीआईपी से दो और एक निर्दलीय शामिल था. वीआईपी से जीतने वाले दोनों विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम लिया. इस तरह बीजेपी के पास 17 राजपूत विधायक हो गए. साल 2015 में 20 राजपूत विधायक जीते थे. मतलब पिछली बार के मुकाबले 2020 में 8 अधिक राजपूत विधायक विधानसभा पहुंचे थे.साल 2020 में एनडीए ने 29 राजपूत नेताओं को टिकट दिया था. बीजेपी ने 21 राजपूतों को टिकट दिया था, जिनमें से 15 जीते. जेडीयू के 7 राजूपत प्रत्याशियों में से 2 ही जीत सके. वहीं 2 वीआईपी के टिकट पर जीते. इस तरह से एनडीए के 29 टिकट में से 19 राजपूत विधानसभा पहुंचे थे. जबकि महागठबंधन ने 18 राजपूतों को टिकट दिया था.
2025 में किसके साथ राजपूत बिरादरी?
तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने 2020 में 18 राजपूतों को टिकट दिया था, जिनमें से महज 8 उम्मीदवार ही जीत सके. आरजेडी ने 8 राजपूतों को टिकट दिया, जिनमें से 7 उम्मीदवारों को जीत मिली तो कांग्रेस के 10 में से एक राजपूत को ही जीत मिल सकी थी. इसके अलावा एक निर्दलीय राजपूत विधायक ने भी जीत दर्ज की .नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में 4 राजपूत मंत्री हैं, जिसमें 2 बीजेपी कोटे से, एक जेडीयू से और एक निर्दलीय शामिल हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में बिहार से 6 राजपूत सांसद हैं, जिसमें 3 बीजेपी से और एक जेडीयू, एक एलजेपी (रामविलास) और एक आरजेडी से हैं. ऐसे में यह देखना होगा कि राजपूत समाज 2025 के विधानसभा चुनाव में किस पार्टी के साथ खड़ा नजर आता है.