जातिगत जनगणना में हिंदू-मुस्लिम सबकी होगी गिनती, सैय्यद-पठान की बढ़ी बेचैनी

आजादी के बाद पहली बार देश में जातिगत जनगणना होने जा रही है. मोदी सरकार ने कैबिनेट से जातिगत जनगणना का मंजूरी भी दे दी है. इस तरह हिंदुओं के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय की जातियों की गणना की जाएगी. जनगणना की प्रश्वनावली में धर्म के साथ-साथ जाति का भी कॉलम होगा. बिहार और तेलंगाना में जाति सर्वे में हिंदुओं के साथ मुस्लिमों की जातियों के आंकड़े जुटाए गए थे. ऐसे में राष्ट्रीय स्तर जातिगत जनगणना होने जा रही है तो हिंदू और मुस्लिम दोनों की जातियों की गिनती की जाएगी?राष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना कराने का फैसला किया है तो उसका सियासी इफेक्ट सिर्फ हिंदू अपर कॉस्ट के ब्राह्मण, क्षत्रिय, भूमिहार और कॉयस्थ पर ही नहीं पड़ेगा बल्कि मुस्लिमों के शेख, सैय्यद, पठान जैसी सवर्ण जातियों पर भी पड़ेगा. इसकी बड़ी वजह है कि जातिगत जनगणना होने के बाद आरक्षण का स्वरूप बदल सकता है.

मुस्लिम जातियां तीन वर्गों में बंटी हुई हैं
मुस्लिम समुदाय की जातियां 3 प्रमुख वर्गों और सैकड़ों बिरादरियों में विभाजित हैं. उच्चवर्गीय मुसलमान को अशराफ कहा जाता है, जिसमें सैय्यद, शेख, तुर्क, मुगल, पठान, रांगड़, कायस्थ मुस्लिम, मुस्लिम राजपूत, त्यागी मुस्लिम आते हैं. मुसलमानों के पिछड़े वर्ग को पसमांदा मुस्लिम कहा जाता है. इसमें अंसारी, कुरैशी, मंसूरी, सलमानी, गुर्जर, गद्दी, घोसी, दर्जी, मनिहार, कुंजड़ा, तेली, सैफी, जैसी ओबीसी जातियां शामिल हैं. इसके बाद अतिपिछड़ी मुस्लिम हैं, जिनको अजलाल कहा जाता है, जिसमें धोबी, मेहतर, अब्बासी, भटियारा, नट, हलालखोर, मेहतर,भंगी, बक्खो, मोची, भाट, डफाली, पमरिया, नालबंद और मछुआरा शामिल हैं. मुस्लिमों में दलित जातियां नहीं होती है.

हिंदू की तरह मुस्लिम जातियों की गणना होगी
हिंदुओं की तरह मुस्लिमों में भी अलग-अलग जातियों की जनगणना होगी. मंडल आयोग की सिफारिश लागू होने के बाद मुस्लिमों में अपर क्लास और बैकवर्ड क्लास जाति उभरकर सामने आई थी. हिंदू की तरह मुस्लिम ओबीसी को कोई प्रमाणिक डाटा नहीं है. मुस्लिमों की बड़ी संख्या ओबीसी (पसमांदा) है, जो राज्य और केंद्र की पिछड़ा वर्ग सूची में शामिल किया गया है. आजादी के बाद से अभी तक जितनी ही जनगणनाएं हुई हैं, उसमें मुस्लिमों की गणना धर्म के आधार पर किया जाता रहा है. इसकी वजह यह भी रही है कि देश में जातिगत जनगणना नहीं हो रही है.

देश में होने वाली जातिगत जनगणना में सिर्फ जातियों की संख्या सामने नहीं आएगी बल्कि उनकी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति का भी पता चलेगा. इससे ये भी पता चलेगा कि मुस्लिम समुदाय कितनी जातियों में बंटा हुआ है, कितनी संख्या अपर क्लास मुस्लिम की है और कितनी आबादी पसमांदा मुसलमानों की है. पीएम मोदी का फोकस पसमांदा मुसलमानों के लुभाने पर रहा, जो ओबीसी के तहत आते हैं. इस तरह से ओबीसी मुस्लिमों का प्रमाणिक आंकड़ा लोगों के सामने आएगा.

हालांकि, माना जाता है कि पसमांदा मुस्लिमों की आबादी 80 से 85 फीसदी है. ऐसे में जातिगत जनगणना से यह पता चल सकेगा कि कैसे पूरा मुस्लिम समाज पिछड़ा नहीं है बल्कि मुस्लिमों में पसमांदा वर्ग है जो पूरे मुस्लिमों में 80-85 फीसदी है पर उनका विकास या उत्थान नहीं हो सका है. यह मोटे तौर पर 1881 की जनगणना से मेल खाता है, जिसमें कहा गया था कि भारत में केवल 19 फीसदी मुसलमान उच्च जाति के थे, जबकि 81 फीसदी निचली जातियों से हैं.

ठाकुर-ब्राह्मण की तरफ सैय्यद-पठान
मुस्लिम समुदाय में पसमांदा मुस्लिमों की संख्या करीब 85 फीसदी बताई जाती है जबकि 15 फीसदी में सैय्यद, शेख, पठान जैसे उच्च जाति के मुस्लिम हैं. अगड़े मुसलमान सामाजिक और आर्थिक तौर पर मजबूत हैं और सभी सियासी दलों में इन्हीं का वर्चस्व रहा है जबकि पसमांदा समाज सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक और राजनीतिक तौर पर हाशिए पर हैं. कहा जाता रहा है कि मुस्लिम के नाम पर सारे सुख और सुविधाओं का लाभ मुस्लिम समाज की कुछ उच्च जातियों को मिल रहा है. मुस्लिम ओबीसी जातियों की स्थिति हिंदुओं से भी खराब है. इसका प्रमाणिक आंकड़ा जातिगत जगणना के जरिए सामने आएगा.

जातिगत जनगणना की प्रक्रिया पूरी होने के बाद आरक्षण की लिमिट बढ़ाए जाने की मांग उठेगी. सामाजिक, शैक्षणिक और सरकारी नौकरी में हिंदुओं में जिस तरह ब्राह्मण, ठाकुर और कायस्थों की सरकारी नौकरी का दबदबा है, उसी तरह से मुस्लिम समाज से शेख, सैय्यद, पठानों का वर्चस्व है. जातिगत जनगणना के बाद मुस्लिमों के अंदर में भी सियासी वर्चस्व की जंग छिड़ सकती है. पसमांदा मुस्लिमों की तरफ से अशराफ मुस्लिमों के खिलाफ आवाज उठ सकती है, उसका असर आरक्षण से लेकर सियासत के मैदान तक में पड़ेगा.

आरक्षण की 50 फीसदी लिमिट पर पड़ेगा
जातिगत जनगणना का सबसे पहला प्रभाव आरक्षण की 50 फीसदी लिमिट पर पड़ेगा. सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर 50 फीसदी का कैप लगा रखा है. मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू किया गया था तो ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई थी, लेकिन जातिगत जनगणना के बाद सरकार के पास प्रमाणिक आंकड़ा होगा. ओबीसी की जातियां अपनी जनसंख्या के मुताबिक, आरक्षण की मांग कर सकती है. एससी-एसटी को आरक्षण देते समय उनकी जनसंख्या देखी जाती है, लेकिन ओबीसी आरक्षण के साथ ऐसा नहीं है.

आरक्षण की लिमिट बढ़ाई जाती है तो हिंदू जातियों में ब्राह्मण, ठाकुर और कायस्थ जैसी जातियों की बेचैनी बढ़ेगी तो मुस्लिमों से शेख, पठान, सैय्यद, रांगड़ जैसी सवर्णों की भी टेंशन बढ़ेगी. मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू किया गया था, हिंदू उच्च जातियों के साथ मुस्लिमों के शेख, पठान, सैय्यद भी विरोध में खड़े थे. ऐसे में जातिगत जनगणना के बाद आरक्षण को सीमा को बढ़ाने की बात होती है तो उसके विरोध में मुस्लिमों की उच्च जातियां भी उतर सकती हैं. मुस्लिम समुदाय अशराफ, पसमांदा और अजलाल जैसे तीन वर्गों में बंटा है, जिन पर इस जनगणना का अलग-अलग प्रभाव पड़ेगा.

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