POK से सिंध तक लहूलुहान पाकिस्तान ये 1971 पार्ट-2 है अब मत चूको भारत!

पाकिस्तान इस समय अपने इतिहास के सबसे नाजुक और विस्फोटक दौर से गुजर रहा है। जिस तरह 1971 में पूर्वी पाकिस्तान की उपेक्षा, भेदभाव और सांस्कृतिक दमन ने उसे अलग देश बांग्लादेश बनने पर मजबूर किया था, ठीक वैसी ही चिंगारी अब बलूचिस्तान, सिंध, खैबर पख्तूनख्वा और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) जैसे इलाकों में फैल रही है। पाकिस्तान की सत्ता के केंद्र इस्लामाबाद और रावलपिंडी की नीतियों ने इन क्षेत्रों को इतने वर्षों तक सिर्फ संसाधनों का स्रोत समझा, लेकिन उनके लोगों की भावनाओं, अधिकारों और आकांक्षाओं को हमेशा कुचल दिया। अब जब पाकिस्तान खुद आर्थिक दिवालियापन की ओर बढ़ रहा है, तो वह इन क्षेत्रों की आवाज को और ज्यादा बेरहमी से दबाने में जुटा है, लेकिन वक्त अब बदल चुका है। पाकिस्तान को अब वो पुकारें सुनाई दे रही हैं जिन्हें वह दशकों तक अनसुना करता रहा।
बलूचिस्तान की कहानी सबसे लंबी और सबसे दर्दनाक है। यह इलाका पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का लगभग 44% है और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है यहां गैस, कोयला, खनिज और समुद्री व्यापार के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण ग्वादर बंदरगाह स्थित है। लेकिन यहां के लोगों के लिए ये संसाधन कभी भी खुशहाली नहीं ला सके। पाकिस्तानी सेना और सरकार ने यहां सिर्फ दो काम किए एक, जितना हो सके उतना दोहन और दूसरा, जो भी विरोध करे, उसे गायब कर दो। बलूचिस्तान के गांवों और शहरों में ‘गायब लोगों’ की तस्वीरें आम हो गई हैं। मांएं अपने बेटों की तस्वीरें लेकर न्याय की गुहार लगाती हैं, लेकिन उन्हें केवल सेना की बंदूकें और धमकियां मिलती हैं। बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) और अन्य समूहों ने अब हथियार उठा लिए हैं। 2025 की शुरुआत में जब BLA ने जफर एक्सप्रेस ट्रेन पर हमला करके सैकड़ों यात्रियों को बंधक बना लिया, तो यह केवल एक आतंकी घटना नहीं थी, बल्कि यह एक प्रतीक था बलूचिस्तान अब चुप नहीं रहेगा।
दूसरी तरफ सिंध, जो कभी पाकिस्तान का सांस्कृतिक केंद्र था, आज खुद को राजनीतिक रूप से उपेक्षित महसूस करता है। सिंधु नदी, जिसे सिंध का जीवन कहा जाता है, उसके जल पर पंजाब का कब्जा है। पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय की योजनाएं सिंध में पानी की उपलब्धता को और घटा रही हैं, जिससे वहां के किसान त्रस्त हैं। थरपारकर और बदीन जैसे इलाकों में अकाल जैसी स्थिति है, जबकि पंजाब में धान के खेत लहलहा रहे हैं। सिंध के लोगों का गुस्सा अब सड़कों पर दिख रहा है। 2024 के अंत और 2025 की शुरुआत में कई जिलों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, जिनमें ‘सिंध पाकिस्तान से अलग हो’ जैसे नारे लगे। सिंधी भाषा, संस्कृति और पहचान को हाशिए पर डालने की लगातार कोशिशों ने वहां के युवाओं को अपने भविष्य को पाकिस्तान से अलग सोचने पर मजबूर कर दिया है।
खैबर पख्तूनख्वा (KPK), जो पहले ही आतंकवाद और अमेरिकी युद्ध का सबसे बड़ा शिकार रहा है, आज फिर बारूद के ढेर पर बैठा है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और इस्लामिक स्टेट खोरासान (ISKP) जैसे संगठनों ने यहां अपनी जड़ें मजबूत कर ली हैं। हर महीने किसी न किसी इलाके में बम धमाके, पुलिस थानों पर हमले और सेना के काफिलों पर घात लगाकर वार होते हैं। आम लोग इन हमलों से थक चुके हैं, लेकिन वे पाकिस्तान सरकार से भी उतने ही नाराज़ हैं, जिसने उनकी सुरक्षा के नाम पर उनके गांवों पर ड्रोन और तोपें बरसाई हैं। यहां के युवाओं में पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा तेजी से बढ़ रहा है। पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट (PTM) जैसी नागरिक मुहिमों को सरकार ने देशद्रोह करार दिया, लेकिन यह आवाज अब सोशल मीडिया और स्थानीय रैलियों में और ताकत से गूंज रही है। सेना की सख्ती अब असर नहीं दिखा रही, बल्कि लोगों को और ज्यादा विद्रोह की ओर धकेल रही है।
पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK), जिसे पाकिस्तान ‘स्वर्ग’ कहता है, वहां के लोग अब ‘नरक’ जैसे हालात से तंग आ चुके हैं। पिछले साल PoK में बिजली की दरों में भारी बढ़ोत्तरी हुई, जिससे स्थानीय व्यापारियों और आम जनता का जीना दूभर हो गया। फिर महंगाई की मार, बेरोजगारी और मूलभूत सुविधाओं की कमी ने जनता का आक्रोश बढ़ा दिया। मई 2024 में मुज़फ्फराबाद, रावलकोट और कोटली जैसे इलाकों में भारी विरोध प्रदर्शन हुए, जिनमें खुलेआम पाकिस्तान विरोधी नारे लगे। कई रैलियों में यह भी सुनाई दिया “हमें पाकिस्तान नहीं, आज़ादी चाहिए।” सेना और पुलिस ने लाठीचार्ज, गिरफ्तारी और इंटरनेट बंदी से आंदोलन को कुचलने की कोशिश की, लेकिन आंदोलन अब भी जिंदा है। PoK के लोगों को अब समझ में आ गया है कि पाकिस्तान ने उन्हें सिर्फ भारत विरोधी एजेंडा चलाने के लिए इस्तेमाल किया है, असल में कभी उनके हित में कोई काम नहीं किया।
इस सबके बीच पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था रसातल में जा रही है। IMF से 7 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज के बावजूद देश की हालत बदतर बनी हुई है। डॉलर की कीमत 320 रुपये के पार जा चुकी है। महंगाई 35% से ऊपर है। पेट्रोल, गेहूं, बिजली, गैस हर चीज़ आम आदमी की पहुंच से बाहर है। विदेशी निवेशक पाकिस्तान से अपना पैसा निकाल रहे हैं। पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज कई बार क्रैश हो चुकी है। सेना का बजट फिर भी बढ़ रहा है, जबकि शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए सरकार के पास पैसे नहीं हैं। इस हालत में, अलगाववादी आंदोलनों को और बल मिल रहा है, क्योंकि लोगों को लग रहा है कि पाकिस्तान अब उन्हें केवल बोझ समझता है।
भारत के लिए यह समय रणनीतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। पाकिस्तान के ये टुकड़े-टुकड़े होते समाज और भूगोल उसके अपने कर्मों का फल हैं, लेकिन भारत को इसे केवल देखने तक सीमित नहीं रहना चाहिए। जैसे 1971 में इंदिरा गांधी सरकार ने बांग्लादेश के आंदोलन को कूटनीतिक, सामरिक और मानवीय समर्थन दिया था, वैसे ही अब भारत को बलूचिस्तान, सिंध, केपीके और PoK में हो रहे स्वतंत्रता आंदोलनों को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र, मानवाधिकार संगठन, मीडिया और थिंक टैंकों के जरिए भारत को यह दिखाना चाहिए कि पाकिस्तान में लोकतंत्र एक दिखावा है और वहां के अल्पसंख्यक चाहे वो शिया हों, हिंदू हों, सिख हों या क्षेत्रीय लोग सभी उत्पीड़न का शिकार हैं।
भारत के पास यह भी मौका है कि वह PoK को लेकर अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाए। अगर वहां की जनता खुद पाकिस्तान से अलग होने की मांग कर रही है, तो भारत इस नैरेटिव को मज़बूती से आगे बढ़ा सकता है कि PoK भारत का हिस्सा है और वहां की जनता पाकिस्तान के ज़ुल्म से तंग आ चुकी है। इसी तरह बलूच नेताओं को भारत में मंच और सहानुभूति मिलनी चाहिए। भारत की संसद में इस पर चर्चा होनी चाहिए और सरकार को स्पष्ट नीति बनानी चाहिए कि वह पाकिस्तान की ‘टुकड़े-टुकड़े’ होती स्थिति में सिर्फ मूकदर्शक नहीं रहेगा।
पाकिस्तान को अब वह दिन नज़दीक दिख रहे हैं, जब उसे खुद समझ आ जाएगा कि वह देश नहीं बल्कि एक अस्थायी सत्ता का ढांचा था, जो नफरत, धर्मांधता और जबरदस्ती के दम पर बनाया गया था। कोई भी देश उस समय तक नहीं टिक सकता जब उसकी बुनियाद असमानता, दमन और लूट पर टिकी हो। पाकिस्तान की सत्ता ने जिन इलाकों को दशकों तक शोषित किया, अब वही इलाके उसकी एकता को सबसे बड़ा खतरा बन गए हैं।
आज पाकिस्तान जिस रास्ते पर है, वह सिर्फ विभाजन की ओर नहीं, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक विघटन की ओर बढ़ रहा है। यह विघटन इसलिए नहीं कि कोई बाहरी ताकत ऐसा चाहती है, बल्कि इसलिए कि पाकिस्तान ने खुद अपने नागरिकों को पराया बना दिया है। जब कोई राज्य अपने ही नागरिकों को दुश्मन समझे, तो वह राज्य ज्यादा समय तक नहीं चल सकता। बलूचिस्तान से सिंध, केपीके से PoK तक अब जो आवाज़ उठ रही है, वह सिर्फ आज़ादी की नहीं, बल्कि इंसानियत, सम्मान और अधिकार की पुकार है। और इतिहास गवाह है कि ऐसी पुकारें कभी खाली नहीं जातीं।