अमेठी का अनुभव बना सबक, रायबरेली में अब हर कदम पर दिखेंगे राहुल गांधी

राहुल गांधी का रायबरेली दौरा इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी इस समय अपने संसदीय क्षेत्र रायबरेली के दो दिवसीय दौरे पर हैं, और यह दौरा केवल एक राजनीतिक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक सक्रिय जनप्रतिनिधि के रूप में उनकी बदलती भूमिका का प्रमाण है। 2024 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली से विजय हासिल करने के बाद राहुल गांधी लगातार अपने क्षेत्र में दौरे कर रहे हैं, और यह दौरा उनका रायबरेली का पांचवां दौरा है। अमेठी में की गई कथित राजनीतिक भूलों से सबक लेते हुए राहुल गांधी रायबरेली में कोई कोताही नहीं बरतना चाहते। वे अब यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि जनता से उनका सीधा संवाद बना रहे और विकास योजनाओं की प्रगति पर उनकी नजर हो।

मंगलवार को राहुल गांधी लखनऊ एयरपोर्ट के जरिए रायबरेली पहुंचे और दौरे की शुरुआत कुंदनगंज स्थित विशाखा फैक्टरी में दो मेगावॉट सोलर रूफ प्लांट और इलेक्ट्रिक चार्जिंग स्टेशन के उद्घाटन से की। इसके बाद उन्होंने सिविल लाइन स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का अनावरण किया। ये कार्यक्रम केवल प्रतीकात्मक नहीं थे बल्कि संदेश दे रहे थे कि राहुल गांधी अब रायबरेली के हर पहलू में सक्रिय भागीदारी निभाना चाहते हैं। दिन का अगला महत्वपूर्ण पड़ाव था दिशा की बैठक, जिसमें राहुल गांधी ने न केवल भाग लिया बल्कि पिछली बैठक में उठाए गए मुद्दों की समीक्षा की और जिलास्तरीय योजनाओं की प्रगति का गहन मूल्यांकन भी किया। इस बैठक में जिले के सभी विधायक, ब्लॉक प्रमुख, और जिला पंचायत अध्यक्ष शामिल थे। यह बैठक इस बात का संकेत है कि राहुल गांधी अब किसी प्रतिनिधि को नहीं भेज रहे, बल्कि स्वयं विकास योजनाओं की निगरानी कर रहे हैं।

इसके बाद उन्होंने लालगंज में रेल कोच फैक्टरी का दौरा किया, जहां उन्होंने उत्पादन और श्रमिकों की स्थितियों का जायजा लिया। दिन के अंतिम कार्यक्रम के तहत राहुल गांधी सरेनी विधानसभा क्षेत्र के मुराईबाग डलमऊ में बूथ अध्यक्षों से मुलाकात करने पहुंचे। यह बैठक उनके संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा थी। कांग्रेस को जमीनी स्तर पर मजबूत करने की दिशा में यह कदम महत्वपूर्ण है क्योंकि बूथ अध्यक्ष ही पार्टी की रीढ़ होते हैं और चुनावी जीत-हार में उनकी भूमिका निर्णायक मानी जाती है। राहुल गांधी ने इन पदाधिकारियों से न केवल संवाद किया बल्कि यह भरोसा भी दिलाया कि वह उनकी समस्याओं और सुझावों को गंभीरता से लेंगे। दिन का समापन रायबरेली के भुएमऊ गेस्ट हाउस में रात्रि विश्राम के साथ हुआ।

बुधवार की शुरुआत राहुल गांधी ने भुएमऊ गेस्ट हाउस में पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से मुलाकात के साथ की। यह मुलाकात आत्मीय संवाद का अवसर थी, जहां कार्यकर्ताओं ने अपने अनुभव और चिंताओं को साझा किया। इसके बाद राहुल गांधी अमेठी की ओर रवाना हुए, जहां उन्होंने इंडो-रसियन रायफल्स प्रा. लि. और गन फैक्ट्री का दौरा किया। यह दौरा केवल प्रतीकात्मक नहीं था बल्कि उनकी पूर्ववर्ती कर्मभूमि अमेठी को पूरी तरह नहीं छोड़ने का संकेत भी था। राहुल गांधी का यह रुख स्पष्ट करता है कि वह अब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए एक व्यापक रणनीति के तहत काम कर रहे हैं जिसमें रायबरेली के साथ-साथ अमेठी का भी अहम स्थान है।

अमेठी में हार के बाद कांग्रेस का गढ़ कही जाने वाली रायबरेली को उन्होंने विशेष ध्यान देने लायक माना। संजय गांधी अस्पताल मुंशीगंज में ओपन हार्ट सर्जरी के लिए बने नए ऑपरेशन थियेटर का उद्घाटन करते समय राहुल गांधी ने स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की दिशा में अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। इसके साथ ही उन्होंने इंदिरा गांधी नर्सिंग कॉलेज का दौरा भी किया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी मुद्दों पर उनका फोकस बरकरार है। राहुल गांधी का यह दौरा केवल उद्घाटन और निरीक्षण तक सीमित नहीं था बल्कि इसमें जनता से प्रत्यक्ष संवाद और उनकी समस्याओं को सुनने की भावना झलक रही थी।

राहुल गांधी का यह सक्रिय रूप उनके पुराने संसदीय क्षेत्र अमेठी में दिखने वाले तौर-तरीकों से अलग है। अमेठी में अक्सर उन पर यह आरोप लगता रहा कि वह वहां की प्रशासनिक बैठकों से दूर रहते थे और आम जनता से संवाद कम करते थे। इसका परिणाम 2019 के चुनाव में हार के रूप में सामने आया। लेकिन रायबरेली में वह बिल्कुल अलग रणनीति अपनाते हुए दिखाई दे रहे हैं। वह हर विकास योजना की समीक्षा स्वयं कर रहे हैं, जिला स्तर की बैठकों में भाग ले रहे हैं, बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं और छोटे-बड़े कार्यक्रमों में शिरकत कर रहे हैं। यह बदलाव इस बात का संकेत है कि राहुल गांधी अब राजनीति को पुराने अंदाज में नहीं बल्कि नए सिरे से जनता के बीच जाकर, उनकी भागीदारी के साथ आगे बढ़ाना चाहते हैं।

यह दौर केवल एक सांसद की जिम्मेदारियों के निर्वहन का नहीं बल्कि एक राष्ट्रीय नेता की उस रणनीति का भी हिस्सा है जो उत्तर प्रदेश जैसे बड़े और प्रभावशाली राज्य में कांग्रेस की खोई हुई जमीन वापस पाने के लिए बनाई गई है। 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से कांग्रेस को छह सीटें मिलीं और कुछ सीटों पर वह मामूली अंतर से हारी। इन परिणामों ने पार्टी को उम्मीद दी है कि यदि सही रणनीति अपनाई जाए तो 2027 में होने वाले विधानसभा चुनावों और 2029 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को और बेहतर सफलता मिल सकती है। इसी रणनीति के तहत राहुल गांधी ने वायनाड सीट को छोड़कर रायबरेली को चुना और इसे अपनी प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर रखा।

विपक्ष हमेशा से यह आरोप लगाता आया है कि गांधी परिवार केवल चुनावों के समय अपने क्षेत्र में आते हैं और फिर गायब हो जाते हैं। राहुल गांधी इन आरोपों को खारिज करने के लिए बार-बार रायबरेली आ रहे हैं, जनता से मिल रहे हैं, प्रशासनिक बैठकों में भाग ले रहे हैं और विकास कार्यों का निरीक्षण कर रहे हैं। यह लगातार दौरे करना सिर्फ दिखावा नहीं बल्कि विपक्ष के नैरेटिव को तोड़ने की रणनीति है। वे यह संदेश देना चाहते हैं कि अब कांग्रेस का नेतृत्व अपने कर्तव्यों को लेकर पूरी तरह सजग और सक्रिय है।

रायबरेली केवल एक संसदीय क्षेत्र नहीं रह गया है, बल्कि यह अब कांग्रेस की पुनरुत्थान यात्रा की प्रयोगशाला बन चुका है। राहुल गांधी इसे केवल अपनी राजनीतिक विरासत के रूप में नहीं बल्कि एक नई जिम्मेदारी के तौर पर देख रहे हैं। जनता के बीच लगातार उपस्थिति बनाए रखना, हर स्तर के कार्यकर्ता से संवाद करना, प्रशासन से सीधा संवाद करना और योजनाओं की वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन करना ये सभी संकेत हैं कि राहुल गांधी अब अपनी राजनीति को बिल्कुल नई दिशा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि रायबरेली के बहाने कांग्रेस उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजनीति में खुद को किस रूप में पुनः स्थापित कर पाती है। लेकिन इतना तय है कि राहुल गांधी अब केवल संसद तक सीमित नहीं रहना चाहते, वे सड़क तक उतरकर राजनीति को जमीनी स्तर पर जीना भी सीख रहे हैं।

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