कर्नाटक बनेगा देश में सबसे ज्यादा आरक्षण देने वाला राज्य, देश में किस प्रदेश में कितना मिल रहा रिजर्वेशन?

कर्नाटक की कांग्रेस सरकार आरक्षण को लेकर बड़ा कदम उठाने की तैयारी में है. सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक सर्वे रिपोर्ट अब मंत्रिमंडल के सामने है और 17 अप्रैल को चर्चा होनी है. इस रिपोर्ट में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण बढ़ाने की बात कही गई है. माना जा रहा है कि सिद्धारमैया के अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार ओबीसी आरक्षण को 32 फीसदी से बढ़ाकर 51 फीसदी तक किए जाने का प्रस्ताव है. इस तरह सिद्धारमैया ओबीसी आरक्षण को बढ़ाने के फैसले को अमलीजामा पहनाने में कामयाब रहती है कर्नाटक देश में सबसे ज्यादा आरक्षण वाला राज्य बन जाएगा?

देश में आरक्षण की लिमिट 50 फीसदी है. साल 1991 में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने आर्थिक आधार पर सामान्य श्रेणी के लिए 10 फीसदी आरक्षण देने का आदेश जारी किया था, जिसे इंदिरा साहनी ने कोर्ट में चुनौती दी थी. नौ जजों की बेंच ने कहा था कि आरक्षित स्थानों की संख्या कुल उपलब्ध स्थानों के 50 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए. इसी फैसले के बाद से कानून ही बन गया कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ये भी स्पष्ट कर रखा है कि असाधारण परिस्थितियों में ही आरक्षण की 50 फीसदी सीमा को लांघा जा सकता है, लेकिन देश की विविधता और सामाजिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सिद्ध करना होगा. कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार आरक्षण बढ़ाने की सिफारिश करती है तो उसे भी साबित करना होगा और कानूनी कसोटी पर भी खरा उतरना होगा, क्योंकि कई सरकारें आरक्षण बढ़ाने के मंसूबों में कामयाब नहीं हो सकी हैं.

कर्नाटक में आरक्षण बढ़ाने का मॉडल?
कर्नाटक में अभी तक एससी-एसटी को 24 फीसदी और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 32 फीसदी आरक्षण प्रदान किया जाता है, जो कुल मिलाकर 56 फीसदी होता है. इसके अलावा 10 फीसदी आरक्षण ईडब्ल्यूएस के लिए है. कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने राज्य में जातिगत सर्वे के आधार पर आरक्षण बढ़ाने की स्ट्रैटेजी बनाई है. इस रिपोर्ट में पिछड़ी जातियों की आबादी राज्य में करीब 70 फीसदी है. ओबीसी के आरक्षण को 32 फीसदी से बढ़ाकर 51 फीसदी करने की सिफारिश की है. अगर यह सिफारिश लागू होती है, तो राज्य में कुल आरक्षण बढ़कर 85 फीसदी हो जाएगा, जिसमें 10 फीसदी आरक्षण ईडब्ल्यूएस का भी शामिल है. इस तरह देश में सबसे ज्यादा आरक्षण देने वाले वाला राज्य कर्नाटक बन जाएगा.

सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक सर्वे रिपोर्ट में तमिलनाडु और झारखंड का उदाहरण दिया गया है. तमिलनाडु में 69 फीसदी और झारखंड में 77 फीसद आरक्षण है. ये आरक्षण वहां की पिछड़ी जातियों की आबादी के हिसाब से दिए जाने के बाद है. कर्नाटक सरकार का कहना है कि बदलते सामाजिक परिदृश्य और ओबीसी की बढ़ती आकांक्षाओं के चलते आरक्षण की लिमिट को बढ़ाना जरूरी है. बीएस येदियुरप्पा सरकार के दौरान भी आरक्षण को बढ़ाने की सिफारिश की गई थी. कोर्ट में भी अपना पक्ष रखा था. देखना होगा कि आगे क्या होता है! ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन सिद्धारमैया सरकार आरक्षण को बढ़ाने की सिफारिश को लागू करने की दिशा में अपने कदम बढ़ा दिए हैं.

देश में आरक्षण का स्वरूप क्या है?
भारत में आरक्षण एक प्रणाली है, जिसे ब्रिटिश राज के दौरान स्थापित किया गया था. भारतीय संविधान में प्रावधानों के आधार पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों नेआरक्षण की व्यवस्था लागू कर रखी है. आजादी के बाद देश में संविधान लागू हुआ, तो अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान रखा गया था, जो सामाजिक छुआछूत और भेदभाव के आधार पर दिया गया था. इसके तहत जिस जाति की जितनी आबादी है, उस लिहाज से आरक्षण दिया था.

देश में एससी-एसटी को 22.5 फीसदी आरक्षण का प्रावधान रखा गया, जिसमें अनुसूचित जाति को 15 फीसदी और अनुसूचित जनजाति को 7.5 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है, लेकिन राज्य स्तर पर उसका स्वरूप बदल जाता है. जिन राज्यों में आदिवासी जाति की आबादी ज्यादा है तो वहां पर उन्हें ज्यादा आरक्षण मिलता है और जिन राज्य में कम हैं, वहां कम. ऐसे ही अनुसूचित जाति के साथ भी है. इसके बाद 1990 में मंडल कमीशन लागू होने के बाद ओबीसी जातियों को 27 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान रखा गया. सरकार ने वर्ग के आधार पर ओबीसी जातियों को आरक्षण दिया है.

मोदी सरकार ने 2019 में आर्थिक रूप से गरीब सामान्य वर्ग के लोगों को शिक्षा और नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण देने के लिए अनुच्छेद 15 संशोधन विधेयक को पारित किया था. इस तरह से देश में चार स्तर पर आरक्षण दिया जा रहा है, जिसमें अनुसूचित जाति को 15 फीसदी, अनुसूचित जनजाति को 7.5 फीसदी, ओबीसी को 27 फीसदी और सामान्य वर्ग की गरीबों को ईडब्ल्यूएस के तहत 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है, लेकिन राज्य सरकारें अपने राज्य की आबादी के लिहाज से ओबीसी, दलित और आदिवासी समुदाय के आरक्षण दे रही हैं.

हालांकि, आरक्षण की 50 फीसदी लिमिट का बैरियर इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद लागू है, जिसके चलते राज्य सरकारें आरक्षण को बढ़ाने की दिशा में कामयाब नहीं हो पाती है. राज्य सरकारें जब भी आरक्षण बढ़ाने के लिए कदम उठाती हैं तो अदालत में आकर कानूनी पेच फंस जाता है. इसके चलते बिहार से लेकर महाराष्ट्र, हरियाणा और राजस्थान तक आरक्षण बढ़ाने का दांव कामयाब नहीं हो सका. हालांकि, तमिलनाडु की जयललिता सरकार ने आरक्षण को बढ़ाकर 69 फीसदी किया तो उसे संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किया गया है, ताकि यह कानून न्यायिक समीक्षा से बाहर हो सके.

देश में आरक्षण की लिमिट भले ही 50 फीसदी निर्धारित हो, लेकिन अलग-अलग राज्यों में आरक्षण का स्वरूप अलग-अलग है. यूपी, उत्तराखंड, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल में 50 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है, जिसमें ईडब्ल्यूएस का 10 फीसदी आरक्षण शामिल नहीं है. तमिलनाडु से लेकर पूर्वोत्तर सहित कई राज्यों में आरक्षण 80 फीसदी तक है तो सिक्किम में 85 फीसदी आरक्षण है. इसके अलावा पहाड़ी राज्य हिमाचल में भी आरक्षण 59 फीसदी है.

बिहार से लेकर झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और तेलंगाना सरकार ने आरक्षण की लिमिट को बढ़ाने का फैसला लिया, लेकिन कानूनी पेंच में मामला फंसा हुआ है. राजस्थान में 64 फीसदी आरक्षण लागू है. मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण को बढ़ाने का फैसला किया, लेकिन मामला अदालत में है तो बिहार के आरक्षण का मामला भी उलझा हुआ है.

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