अखिलेश के ‘आउटगोइंग’ बयान का करारा जवाब, शाह बोले योगी ही होंगे सीएम!


उत्तर प्रदेश की राजनीति भारतीय लोकतंत्र में हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। कहा जाता है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता लखनऊ से होकर गुजरता है। 2024 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का प्रदर्शन अपेक्षा से कमजोर रहा, जिससे कई राजनीतिक अटकलों को बल मिला। चुनाव परिणामों के बाद से ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की स्थिति को लेकर चर्चाएं तेज हो गईं। कहा जाने लगा कि क्या योगी आदित्यनाथ का प्रभाव कम हो रहा है और क्या बीजेपी नेतृत्व उनके स्थान पर किसी अन्य चेहरे को सामने लाने की योजना बना रहा है। हालांकि, हाल ही में हुए उपचुनावों में बीजेपी की शानदार जीत ने यह स्पष्ट कर दिया कि योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता बरकरार है और पार्टी को उनका नेतृत्व अब भी स्वीकार्य है।
बीजेपी के अंदर से ही कई बार यह खबरें आती रही हैं कि योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय नेतृत्व के बीच मतभेद हैं। इसको लेकर विपक्ष ने भी कई बार हमले किए हैं। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तो यहां तक कह चुके हैं कि योगी आदित्यनाथ अब “आउटगोइंग सीएम” हैं। लेकिन, इन तमाम अटकलों पर गृह मंत्री अमित शाह के बयान ने विराम लगा दिया। लोकसभा में वक्फ बिल पर चर्चा के दौरान जब अखिलेश यादव ने योगी आदित्यनाथ के बारे में टिप्पणी की, तो अमित शाह ने साफ कहा कि योगी आदित्यनाथ फिर से मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। उनके इस बयान के बाद यूपी की राजनीति में नई हलचल मच गई और यह चर्चा शुरू हो गई कि क्या योगी आदित्यनाथ वाकई तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।
2017 में जब योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था, तब कई राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे चौंकाने वाला फैसला बताया था। योगी आदित्यनाथ का प्रशासनिक अनुभव सीमित था और पार्टी में कई वरिष्ठ नेता थे, जो इस पद के लिए कतार में थे। लेकिन, योगी आदित्यनाथ ने अपनी कार्यशैली से सबको चौंका दिया। उन्होंने उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था को सख्ती से लागू किया और राज्य में माफिया राज को खत्म करने का प्रयास किया। इसका असर 2022 के विधानसभा चुनावों में दिखा, जब बीजेपी ने दोबारा सत्ता में वापसी की। यह पहली बार हुआ जब किसी गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री ने लगातार दो बार उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई।
2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के अपेक्षाकृत कमजोर प्रदर्शन के बाद यह चर्चा शुरू हुई कि क्या योगी आदित्यनाथ को हटाया जा सकता है। यूपी में बीजेपी को 2019 की तुलना में लगभग 30 सीटें कम मिलीं। 2019 में बीजेपी ने सहयोगियों के साथ मिलकर 64 सीटें जीती थीं, जबकि 2024 में यह आंकड़ा घटकर 37 पर आ गया। सीटों में गिरावट के बावजूद, योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता बनी रही। चुनाव के दौरान उन्होंने 200 से ज्यादा रैलियां कीं और उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों को जनता का समर्थन मिला।
लोकसभा चुनावों के बाद से यूपी बीजेपी में कुछ असंतोष के स्वर सुनाई देने लगे थे। कुछ विधायकों और सांसदों ने खुलकर सरकार की आलोचना की। लोनी के विधायक ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के करीबी अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी इन आरोपों का समर्थन करते हुए सवाल खड़े किए। इससे यह अटकलें तेज हो गईं कि योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय नेतृत्व के बीच कुछ मतभेद हो सकते हैं। हालांकि, अमित शाह के बयान के बाद यह स्पष्ट हो गया कि पार्टी में योगी आदित्यनाथ की स्थिति मजबूत बनी हुई है।
योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि बीजेपी फिलहाल उन्हें हटाने की स्थिति में नहीं है। उनके शासनकाल में उत्तर प्रदेश में अपराध दर में कमी आई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2017 के बाद से राज्य में संगठित अपराध से जुड़े मामलों में 60% की गिरावट आई है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, यूपी में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में भी 35% की कमी दर्ज की गई है। योगी सरकार द्वारा लागू की गई बुलडोजर नीति को जनता का समर्थन मिला है। 2022 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने इसे एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया और इसका फायदा भी मिला।
इसके अलावा, उत्तर प्रदेश में इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर भी बड़े पैमाने पर काम हुआ है। प्रदेश में कई एक्सप्रेसवे बनाए गए हैं और निवेश आकर्षित करने के लिए कई योजनाएं शुरू की गई हैं। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2023 के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने 33 लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव हासिल किए थे। इससे यह संकेत मिलता है कि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में यूपी की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल रही है।
योगी आदित्यनाथ को लेकर बीजेपी के अंदर और बाहर चर्चाएं इसलिए भी होती हैं क्योंकि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता है। जब भी बीजेपी में भविष्य के नेतृत्व पर बात होती है, तो योगी आदित्यनाथ और अमित शाह के नाम प्रमुखता से लिए जाते हैं। विपक्ष भी इस बात को भली-भांति समझता है और यही कारण है कि अखिलेश यादव लगातार योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधते रहते हैं। हाल ही में उन्होंने एक ट्वीट में कहा था कि बीजेपी के एक विधायक ने दावा किया है कि अगर दिल्ली में बदलाव होता है, तो योगी आदित्यनाथ सबसे बेहतर विकल्प होंगे। इसके बाद अखिलेश यादव ने तंज कसते हुए पूछा था कि आखिर कौन से बाबा दिल्ली जा रहे हैं।
बीजेपी के लिए योगी आदित्यनाथ का तीसरा कार्यकाल कई मायनों में महत्वपूर्ण हो सकता है। अगर 2027 में यूपी विधानसभा चुनावों में बीजेपी जीत हासिल करती है, तो यह पहली बार होगा जब कोई गैर-कांग्रेसी दल लगातार तीसरी बार यूपी की सत्ता में आएगा। यह रिकॉर्ड अब तक केवल कांग्रेस के नाम रहा है।
अमित शाह के बयान के बाद बीजेपी के अंदर भी उन लोगों को झटका लगा होगा, जो योगी आदित्यनाथ की स्थिति को कमजोर करने की कोशिश कर रहे थे। अब यह स्पष्ट हो गया है कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व योगी के साथ है और उनके खिलाफ कोई भी अंदरूनी साजिश सफल नहीं होगी। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि विपक्ष इस मुद्दे को किस तरह भुनाने की कोशिश करता है।
योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में एक मजबूत आधार बनाया है। अगर बीजेपी यूपी में 2027 का चुनाव जीतने में सफल रहती है, तो यह मोदी-शाह युग के बाद पार्टी की राजनीति की दिशा तय करेगा। फिलहाल, अमित शाह के बयान के बाद यह साफ हो गया है कि योगी आदित्यनाथ की कुर्सी फिलहाल सुरक्षित है और बीजेपी उनके नेतृत्व में ही आगे बढ़ने की योजना बना रही है। 2027 के विधानसभा चुनावों में योगी आदित्यनाथ के सामने विपक्षी दलों की चुनौती कितनी मजबूत होगी, यह समय ही बताएगा, लेकिन फिलहाल के राजनीतिक समीकरण योगी की स्थिरता की ओर इशारा कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में अगले कुछ साल बेहद अहम होंगे, क्योंकि इस दौरान न केवल 2027 का चुनाव होगा, बल्कि 2029 के लोकसभा चुनाव की तैयारी भी शुरू हो जाएगी। योगी आदित्यनाथ के निर्णय और उनकी प्रशासनिक रणनीतियां ही तय करेंगी कि वह भविष्य में बीजेपी के सबसे बड़े नेता बनकर उभरेंगे या नहीं।